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________________ SSTRISESIRIDIOIST25 विधानुशासन XS1015121510050SSIOTS अहि वृश्चिक लूतोंदुर योणास मार्जर शुनक हरिणीनां, मग धूर्तस्यापि विषं शमयेयुः पान लेपाभ्यां ॥१९॥ नत (तगर) उत्पल (कमल) या नीलोपर विषमूल (वत्सनाभ) कूड़े की जड़, देवदाली, अगस्तय, घधर बेल, कड़वी तुबी, धननाद (नागर माथी ) या (गाज) हल्दी के पाने तथा लेप करने से सर्प, बिच्छू, चींटी, मकोड़ी, चूहा, घोणस, बिलाव, कुत्ता, हिरण और गीदड़ धतूरे के विष शान्त हो जातेहैं। मंजिष्टा गहधूमंत पिबेत् संपेष्य सर्पिषा दष्टो जलेन मूलं या गवाक्षी सिंदु वारयोः ॥ २०॥ इँसा हुआ पुरुष मंजठि घर काधूमसा को घी के सात पीसकर पीवें। नेत्र बाला की जड़ गवाक्षी (कोरोचन) निगुंडी भी पीवे 1 सर्पिषा निंबा सिंधुत्व निंब बीजानि पाययेत विषदष्ट नरः सः स्यात् क्षण मात्रेण निर्विषः ॥ २१॥ धृत, नीम,सेंधा नमक नीम की निमोली को सर्प से काटे हुए को पिलाने से क्षण मात्र में निर्विष हो जाता है। अध्यात्मरीचिका मूलं कुबेराशा समुद्भवं दष्टोश्वगंधा मूलं वा नस्येत्फणि भृतां विषं ॥ २२॥ इँसा हुआ पुरुष मरिचिका मूलं (काली मिरच की जड़) जो उत्तर दिशा में उगी हुयी हो या असगंध की जड़ पिलावे या नस्य देवे तो फणीभृत सर्प का विष मष्ट होगा। देवी सेहंदवल्ली तुलसी द्रोणग्नि कच्छद स्वरसैः भावितमसकृत् त्रिकटुक सूक्ष्मरजः फणि विषे नस्यां ॥२३॥ सहदेवी (हंदुबल्ली सोमवल्ली), तुलसी, द्रोण (गूमा) अनि, कच्छद (चित्रक की जड़ की छाल) के स्वरस की असकृत (बारबार) भावना दी हुई त्रिकुटक (त्रिकुट= सोंठ, मिरच, पीपल) बारीक पीसकर फणीभृत सर्प के विष को नष्ट करने के लिये नस्य सुंधावे । पटु टंकणारपि दुग्धव्योषेष्वे के न रचित संलेपाया तर्जनीतया काल स्पष्ट भवत्य विषं: ॥ २४॥ परवल, सुहागा, आक का दूध, व्योष (सोंठ, मिरच, पीपल) में से एक एक से उंगली (तर्जनी उंगली) से लेप करने से विष नष्ट हो जाता है।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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