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S5E5I015RISTOT500 विद्यानुशासन 15015TOSSONSIONSOTES आधा पल (दो तोले) नमक इमली के पत्तों का रस एक कुइय (आधा सेर) प्रमाण पीने से लागों का विष नष्ट होता है।
पिष्टया सितांबुना पुंसः पिवतो लयु, दुग्धिकांनेश्वरो मारणे सोपि मातरिश्वा शनैश्चरः
!!१३॥ छोटी दूधी को पुरुष के सफेद जल (मूत्र ) के साथ पीने वाले को ईश्वर= महादेव, मातरिश्चन (वायु) और शनीश्वर भी नहीं मार सकते हैं।
कपित्थ कदलि कंदो वा स्फोटा तूल मेवच अलं सर्प विषं जेतुं पानेन ग्रसनेन वा
॥१४॥ कैथ (काथोड़ी) कदलिं कंद (केले की जड़) आस्फोता (शारिबा अनंतमूल) तूल (कपास काकड़े) अलं (बिच्छू का डंक-समर्थ) और सर्प विष को नष्ट करता है, पिलाने से या निगलने से विषों को जीतता है।
मूलं द्वयं कुमार्गोभिन्नगिरेर्वाण दालिका युक्तं दष्टानां पान मिदं पुनरन्य केपि भाषिते
॥१५॥ दोनों तरह की धृतकुमारी (भिन्नगिरी) (मुर्वा) की दोनों जड़ें और बाण (अम्लता) और बड़ी इन्द्रायण को इसे हुए के पीने के लिये बतलाया है यह किन्ही आचार्यों ने कहा है।
कुष्टं तगरं योषा कटुतुंबिकुटज जालिनी रजनी मूलम अगस्ते मूलं बीजं च समस्त तंदुलीयं च
॥१६॥
फणि घोणस लूतों दर वृश्चिक माजार श्रुनक कीटानां,
यः पिबति तस्य नस्यति विषमेषां जंतुकानांच ॥१७॥ कूटतगर घोषा(देवदाली) कड़वी तूंबी कुटज (कूड़े की छाल)जालिनी (राज तोरई) हल्दी की जड़, अगस्तया की जड़ , बाय विडंग के बीजों को पीने से उसका सर्प गोनास लूता (चींटी मकड़ी) चूहा बिच्छु बिलाब कुत्ता कीड़ो और गीदड़ों जानवरों का विष नष्ट हो जाता है।
नत मुत्पलं विषाणं मूलं कुटजस्य देवदाल्याच,
मुनि योषा कटु तुंबी धन नादानां च रजनी च ॥१८॥ CRORISTICKSTRISTRIES६८० VISIPTEICKSTORIESRIDESI