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________________ SBIOTECI5DISTO5125 विद्यानुशासन PISSISTRISISTRICISION नाम को हंस हं और स्वरों से क्रमशः वेष्टित करके उसके बाहर सोलह दल का कमल बनाकर, दिशाओं में हं झ्वी क्ष्ची हंसः हिवारत, शेष लोंबटुंभः लिखकर यंत्र जन्नाते! फिर बाहर तीन बार ह्रीं से वेष्टित करके क्रों से निरोध करे। इस यंत्र को भोज पत्र पर सोने के कलश से लिखकर धारण करने से सबप्रकार के विषक्षण भर में नष्ट हो जाते हैं। यह यंत्र यक्ष राक्षस भूतादि से पैदा हुए भय को दूर करके रक्षा करता है। अपने लिये सौभाग्य उत्पन्न करके वशीकरण करने में समर्थ होता है। कर्णिकायां लिखेन्मध्ये झौं हकारी च नाम च क्षा दीनवर्णन पटोधींदु टामेंद्रासा सुसं लिरवेत्, रक्षो हरानि मारूतं लादीन दिक्षु स बिंदुकान् ॥२६०॥ तदष्ट दल मंऽभोजं मादया वेष्टटोत् निधा, कुंकुमायैः शुभै द्रव्यैः कल्कितै गोमयां बुना ॥२६१॥ भूर्जे विलिरिक्तं यंत्र मे तत् स्यात् सार्वकार्मिकं, सुवर्ण वेष्टितं यंत्रं धारिते तं धरादिषु ||२६२॥ त्रिःप्रकारात् विषान्मयान परित्रायेत् सर्वदा, मृत्युं जयाभिधानस्य यं त्रैस्यैवारिवलं फलं ||२६३॥ एक अष्ठ दल कमल की कर्णिका में झौं और ह के बीच में नाम को लिखकर, बाहर आठों दलों में क्षि-स्था-स्व-र-ई-व-प-य-बीजों को लिखें। फिर इस आठ दल कमल को तीन बार हीं से वेष्टित करके क्रौं से निरोध करे। इस यंत्र को कुंकुम आदि शुभ द्रव्यों से गौ मूत्र से बने कल्क से लिखे। इस यंत्र को भोजपत्र लिखकर सोने में मंढ़वा कर गले में पहनने से सब कार्य सिद्ध होते हैं। यह मृत्युंजय यंत्र मनुष्यों को तीनों प्रकार के विषों से सदा ही रक्षा करता है यह इसका पूरा फल है। अनुक्तमन्यदप्या हुटर्यत्र स्टौमुनि पुंगवाः, लिरिवतंमरूदुदभूते भूम्याम पतिते दले ॥२६४॥ श्रेष्ठ मुनियों ने बिना कहे भी इसे तथा दूसरे यंत्रों को वायु से उड़कर पृथ्वी पर न गिरे हुये पत्ते पर श्मशान में लिखकर बनाने का विधान कहा है। यह शत्रु का उद्घाटन करता है। द्विकच्छदैः श्मशान स्था मिद मुच्चाटनं रियोः ।।। द्विक (कौवे) छद (पंख) कौवे के पंख से लिखकर शमशान में रखने से शत्रु का उच्चाटन होता है।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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