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________________ CASIRISTRIDICISTRISIO5 विद्यानुशासन 985RISESSIODSEISE ४४. पैंसठ अक्षरों से लेकर निन्यानो अक्षरों तक के जो मंत्र हैं उन्हें स्थान भ्रष्ट जानना। फल- x ४५. तेरह और पन्द्रह अक्षरों के जो मंत्र है उन्हें सर्वतंत्र विशारद विद्वानों ने विकल कहा है। फल४६. सौ, डेढ़ सी, इक्यानबे, अथवा तीन सौ अक्षरों के जो मंत्र होते हैं, वे निःस्नेह कहे गये हैं। फल-x ४७. चार सौ से लेकर एक हजार अक्षर तक के मंत्र प्रयोग में अत्यन्त वृद्ध माने गये हैं। उन्हें शिथिल कहा गया है। फल-x ४८. जिन मंत्र में एक हजार से भी अधिक अक्षर हों, उन मंत्र को पीड़ित बताया गया है। फल-x नोट- उनके अधिक अक्षर वाले मंत्र को स्तोत्र रूप माना गया है। इस प्रकार के मंत्र दोष युक्त कहे गये हैं। २३. दूषित मंत्र साधन विधि। छिन्नादि दोषों से दूषित मंत्र का साधन बताता हूँ। मनुष्य योनि मुद्रासन से बैठकर एकाग्रचित्त हो जिस किसी भी मंत्र का जाप करता है, उसे सब प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। बायें पैर की एड़ी को गुदा के सहारे रखकर दायें पैर की एड़ी को ध्वज (लिंग) के ऊपर रखे तो इसप्रकार योनिमुद्रा बंध नामक उत्तम आसन होता है। २४. मंत्र दोष शान्त्यर्थ संस्कार - प्राचीन मंत्र शास्त्रों में मंत्रों के छिन्न, कच्छादि ४९ दोष कहे हैं। किन्तु सात कोटि मंत्रों से कोई भी ऐसा दोष नहीं है , जो उन मंत्रों में न हो। अतएव उन दोषों की शान्ति के लिये निम्नलिखित दश संस्कार करने चाहिये। ये हैं १. जनन, २. दीपन, ३, बोधन, ४. ताड़न, ५. अभिषेक, ६. विमलीकरण, ७. जीवन, ८. तर्पण, ९. गोपन और १० आयायन । अब इनका स्वरूप कहते हैं। १. एक भोजपत्र पर गोरोचन ( केशर) से एक त्रिकोण यंत्र बनावे । उसको पश्चिम के कोने से आरम्भ करके सात बराबर भागों में बांटकर दक्षिण और पूर्व की ओर से भी सात बराबर भागों में बांट दें। इसप्रकार उसमें ४९ कोठे बन जायेंगे। उनमें अ से ह तक ४९ मातृकाओं को लिखे। यह मंत्र निम्न है। CHOTEORDISTRIEDISCE PR RECISCESOSECSCISCESS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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