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SSCISIOISODOISO15 विद्याधुशासन HSCISIOSDISTRIEOS
तूर्य स्तृतीय वर्गस्थ ह्यद्वर्गः शून्य शेरवरः, हंसातो मंत्रिभिः प्रोक्त समस्त विष नाशनः
॥६९॥ तीसरा वर्ग {च वर्ग) का चौथा अक्षर(झ)में उद्वर्गव और मस्तक (शिकर पर) शून्य बिन्दी अनुस्वार लगाकर अंत में हंस पद अर्थात् इवीं हंसः यह मंत्र सब प्रकार के विष को नष्ट करता है।
शून्यं वकार युक्तं स विसग पुंडरीक संकाशं,
याम करै विन्यस्तं तक्षक दष्टमपि निर्विषं कुरुते ॥७ ॥ शून्य हकार में वकार और विसर्ग लगाकर अर्थात् व्हः इस एकाक्षरी मंत्र को यायें हाथ में लगाने से तक्षक और पुंडरीक सर्प के डसे विष की शंका(भय) को भी निर्विष करके दूर करता है।
शादेवग्गास्यात्ये पष्टे दष्टस्य यष्टि संयुक्तं,
विन्य स्यांगुष्टेन तदा क्रम्य जपेत् तद विषाय । ॥७१॥ यदि सादि यह सवर्ग के अंतिम अक्षर(ह) को पृष्ट अर्थात् आगे यष्टि (अनुस्वार) सहित करके हं बीज को अंगूठे से जपे तो विष के आक्रमण को दूर करता है।
स्वरांभव स्तरैशर्कतं लास्य माग संधिष, चन्द्र स्थितं तदनु हंसः पदं मंत्रि विषं हरित
॥७२॥ स्वयंभू(ल) में यदि मंत्री चं स्यर सहित और हंस से युक्त करके अंग के सब जोड़ों में में लगावे तो सब प्रकार के विष को दूर करता है। ॐ लं वं हसः ॥
ॐवं पूर्व कटूः सविशग्गोंवदन मध्य विन्यस्तः, त्रिविध विषमपि हन्धु चारितोप्यर्थ दुष्ट दुश्वानिः ॥७३||
ॐ वं क्षः उपरोक्त मंत्र के पश्चात विसर्ग सहित कूटाक्षर ॐ वं हंस क्षः इस मंत्र को मुख में कमल में लगाने से बोलते हीं । तीनों प्रकार के विष (स्थावर, जंगम और कृतम) और दुष्ट दुःखों को नष्ट करताहै।
ॐ यं क्षः
ॐ एहि एहि माटो भेरुंडे विज्जाभरिय करडे तंतु मंतु औयोषई हंकारेण, विषणासई स्थावर जंगम किट्टिम जंगम किहिम जंॐहीं देवदत्त विष हरहुं फट्।
ಆಚರಿತ್ರಣದಂಥ & VEERESH