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________________ PSPSPSPSPSS विधानुशासन तारस्तारेण संयुक्तः प्रज्योति बिंदु संयुतौ, आर्य रेफा सुधात्सूते मंडलं कलयान्वितं ॥ ६४ ॥ तार (ॐ) को ॐ से युक्त करके उसमें ज्योति (ई) और बिन्दु (अनुस्वार) लगाकर फिर आर्य (ई) में लगा हुआ रेफ (रकार) और कलाओं (स्वरों) से युक्त मंडल अमृत उत्पन्न करता है। हर हर ह्रदयाय ठः ठः कुर्द्धिते ठः ठः नील कंठाय ठः ठः काल कूट विष भक्षणाय हुं फट अंगानि || मंत्रस्या नील कंठाख्यो लक्ष त्रय जपाद्वयं सांगः, सं सिद्धि मयाति विष वेग निषुदनं: ॥ ६५ ॥ उपरोक्त नील कंठ मंत्र का तीन लाख जप करके सिद्ध करे तो विष के वेग को नष्ट करने वाली सिद्धि अंगो सहित प्राप्त होती है। ॐ नमो भगवते नील कंठाय ठःठः ॥ bestest लक्ष्य प्रजाप्य सिद्धेन प्रयुक्त मंजुना मुना चराचर विषं विश्वे प्रणश्येदौषधादिभिः ॥ ६६ ॥ उपरोक्त मंत्र का एक लाख जापकरके सिद्ध करे तो वह मनुष्य प्रयोग करके यह औषध आदि सब प्रकार के चर और अचर विष को नष्ट कर सकता है। ॐ नमो भगवती नीलकंठी जमल कंठी सर्मल कंठी क्षिप ॐ स्वाहा ठः ठः ॥ लक्ष जपात् सिद्धो जापाद्यैरेष भवति निर्विष मरिवलं, प्रशमयति नेत्र रोगं विष सर्पकं दंत शूल मपि ॥ ६७ ॥ उपरोक्त मंत्र को एक लाख जप करके सिद्ध करके प्रयोग करने पर सब प्रकार के विष, सर्प, नेत्र, रोग और दांतो के रोग दूर होते हैं । ठःठः ॥ ॐ नमो भगवते नील कंठी निर्मलाक्षी रूपिणि शीघ्रं हर हर पर पर परि परि हुं फट द्विगुणीतषड्लक्ष जपाौद्रौ मंत्रोयं भागतेः सिद्धिं, अभिमंत्रणा द्विषातिं प्रशमयितुम् लक्षणात्सकलां ॥ ६८ ॥ इस रौद्र नीलकंठ मंत्र की सिद्धि बारह लाख जप से होती है। इस मंत्र से अभिमंत्रित करने से क्षण मात्र में सब प्रकार के विष का कष्ट निश्चय पूर्वक दूर हो जाता है। やちこちにちゃ 195६४१ PSPS 5959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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