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________________ SARICISTOTRIPATIDIOS विद्यानुशासन BASIRISTOTROPIEDIDIOIST अद्यः पिछेड यंत्र नाम झौंकार मध्ये वहि रपि वलयं षोडश स्वस्तिकानां, आग्रेयं गेह मुद्यन्न व शिरिवमय तद्वेष्टितं त्रिकालाभिः ॥९८ ।। दद्याद्वाह्ये चत्वार्य अमरपुर पुराण्यं अतरालस्थ मंत्राण्ये, एतयंत्रं सुतंत्रे लिरियता प हरेतशाकिनीभ्टा सुभीति ॥९९ ॥ झौं के बीच में नाम को लिखकर, उसके बाहर चारों तरफ सोलह स्वस्तिक बीज लिखे ।उसके बाहर अनि मंडल बनाकर तीन बार १६ कलाओं (स्वरों) से वेष्टित करे उसके बाहर पृथ्वी मंडल में चार अमरपुर में अतंराल निमलिखित मंत्र लिखे। इस यंत्र को विधिपूर्वक लिखा जाने से शाकिनी से भय नहीं होने देता है। मंत्रोद्वार ॐवज धरे बंध-बंध वज्र पाशेन सर्वदुष्ट विन विनाशकानां ॐ हूं तूं योगिनी देव दत्तं रक्ष रक्ष स्थाहा || पूर्व दिशा में ॐ अमृत धरे घर-घर विशुद्ध ॐ हूँ तूं योगिनी देवदत्तं रक्ष-रक्ष स्वाहा ।। दक्षिण दिशा में ॐ अमृत धरे डाकिनी गर्भ संरक्षणी आकर्षणी ॐ हूं धूं फट् योगिनी देवदत्तं रक्ष रक्ष स्वाहा।। पश्चिमस्यां दिशि ॐरूरू यले ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं : क्षांक्षी शं क्षौ क्ष: सर्व योगिनी देवदत्तं रक्ष रक्ष स्वाहा ।। उत्तरस्यां दिशि (इसका यंत्र शांति विधान में ४५ पृष्ठ पर है।) नस्यान्नश्यति शाकिन्यो हिंग्वरिष्ट फल त्वचोः, पिपल युक्तयोः क्षिप्रं रूदंत्यो भय विह्व ला : ॥१००॥ हिंगु वरिष्ट (हींग रीटा) के फल और छाल तथा पीपल की बनाई हुयी नस्य को सूंघने से शाकिन्या क्षण मात्र में ही भय से विहवल होकर रोती हुई भागती है। भूमि कदम्ब मूले हिंगु युत नाशिकांतर निविष्टे, आतरवं कुंवत्यः शाकिन्यो यांति तं मुक्ताः ॥१०१॥ भूमि कदम्ब वृक्ष की जड़ और हींग को मिलाकर नाक के अंदर रखने से शाकिन्या दुख के शब्द बोलती हुयी उसको छोड़कर चली जाती है।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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