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जप मणिरूद्ध खांतोरेफांतो रेफ कारण विंदुना सांतः, प्रणवादि फट् विरामो विज्ञयो मूल मंत्रों सौ
॥ ८८ ॥
जप की मणि पर आदि से प्रणव (3) फिर सांत रेफ कारेण बिन्दुना (हां) फिर खांतो बीज (ग्रां) फिर सांत (हं) उकार और बिन्दु सहित अर्थात् हुं और अंत में फट् को विराम वाला मूल मंत्र जाना जाता है ।
ॐ ह्रां ग्रां हुं फट्
प्रेतदीनेप्रेत गृहे जप्ते नायुत मनेन निशि पूर्व, शाकिन्योदनिग्रह वश्याकष्टं बुधः कुर्यात्
॥ ८९ ॥
रात में भूत के दिन (मंगलवार) को भूत के घर में ( श्मशान में ) दस हजार जप करे, पंडित पुरुष इस मंत्र से शाकिनी आदि ग्रहों का निग्रह वशीकरण और आकर्षण करता है।
अत्राटिते च मुशले रोदति रक्षा कृतेपि संघर्षः, मुंचति पात्रं क्षिप्रं मालाया मूल मंत्रेण
॥ ९० ॥
फिर यह ग्रह रक्षा करने पर भी मशूल के मारने जैसा रोता है और माला मंत्र के जपने से शीघ्र छोड़ देता है।
ॐ ह्रां ग्रां हुं फटिति प्रजप्त राव बीज वाजिगंधांभ्यां अत्राटित मति दुष्ट जहती क्षणिकाः क्षणात् साध्यं
॥९१॥
. इस मंत्र से जपे हुए जो और असगंध को पात्र के ऊपर फेंकने से अत्यंत दुष्ट इक्षणिका तुरन्त ही साध्य को छोड़ देती है।
ॐ णमो भय वदो अरिणमिस्सामिस्स अरिद्वेण बंधेण बंधामि रक्षसाणं भूताणं वाराणं चोराणं डायाणीणां शायिणीणं महोर गाणं बध्धाणं सिहाणं गहाणं अणे विजे दुट्ठाः संभवति तेसिं सव्वेसिं मणं मुहं गई दिट्ठि सुवोहं जिह्वां बंधेण बंधामि धणु धणु महाधणु महाधणु जः जः जः ठः ठः ठः ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्नः ठः ठः ठः ठः ठः ल लललल हुं फट् ॥
तान मुंचति चेन्मंत्री मंत्र और था मुना, अरिष्टणेमि मंत्रेण तद्विधां छेदयेद्बुधः
॥ ९१ ॥
पंडित मंत्री मंत्र और यंत्र से उस ग्रहों को छुडाना चाहे तो इस अरिष्ट मंत्र से उस विद्या को नष्ट
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