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CASTOTRIOTSTRISTD3525 विद्यानुशासन P521501505215015
दहन मंत्रो होम मंत्रोश्च जुहयात त्रिकोण कुंडे मधुरत्रय सर्यधान्य सर्षपलवणैः,
राजपलाशार्क शमाप धुमंद करा स्वादिर काष्टोत्थानौ ॥६४॥ त्रिकोण होम कुंड में घृत दुग्ध मधु सब धान्य सफेद सरसों लेकर पलाश आकड़ा खेजड़ा नीम करंज खेर की लकड़ियों को अग्नि में इन समिधाओं से होम करे।
ॐ वक्रतुडाय धीमही एक दंष्टाय धीमही अमत वाक्यस्य संभवे तन्नो दंत: प्रचोदयात् अग्नि प्रज्वलितं वन्हिना वायं कुर्वन्ति साधका :
॥६५॥
भूतारख्यां गायत्री मुचार्य त्रिः सकृद्धमेदग्निं,
प्रीन्वारान नित्यगे रादौ संधूक्षणं कुर्यात् अग्जि संधूक्षण मंत्रः भूताख्य नाम के गायत्री मंत्र का तीन बार उधारण करके अग्नि जलाये फिर संधूक्षण मंत्र से अग्नि का तीन बार संधूक्षण करे।
प्रणवन धपिंड पंच कला युत तले रेफ युतं प्रकार निरोध, धं धं खं खं वडगै रावण सद्विधयाथ घातय युगलं ॥६७॥
स चन्द्रहास खड़गेन छेदय भेदय द्विस्तथैव, झं झं वं खं हं हां हुं फट घेघे मंत्रोयं जठर भेदिस्थात्
॥६८॥
अल्ट्यूँ ज्वालामालिनी ह्रीं क्लीं ब्लूंद्रां द्रीं यांनी पूंछौं पाहाःघंघरखरखं खड्गै रावण सद्विधया धातय-धातय सचंद्रहास रवड्गेन छेदय-छेदय भेद-भेदय झं-झं रखं हं हां आं क्रों क्षी ज्वाला मालिन्याज्ञापयति हुं फट धेघे ॥६९ ॥
वडगै रावण विद्या उदर भेदी मुद्रा यह जठर भेदो मंत्र है। इसकी खड्गे रावण मुद्रा है।
प्रणवेन रहित झं पिंडो गुप्तो चारितः स्ववायु निर्गमनः, हाः पूर्णेदं समेत: स्थान मुष्टि ग्राहो मंत्रोचं
॥७० ॥
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