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________________ CSRISTOTRICISTRISADS विद्यानुशासन ISIO505OTSOISOIST रतिकाम ग्रह नियमः प्रोक्तोयंने तर त्र नियमोस्ति, पुरुष ग्रहोपि पुरुषं गृहाति गन्हाति स्त्री गृहोपि वनितां ॥२४॥ यह नियम ग्रहों के रति कामना से पकड़ने के हैं, अन्यत्र नहीं है क्योंकि अन्य इच्छाओं में पुरुष ग्रह पुरुष को और स्त्री ग्रह स्त्री को ग्रहण करते हैं। दष्ट्रां भैरवल नामा धणुर्ग्रहः शारिवलश्च शश नागः ग्रीवा भंगो चलितोषड परमार ग्रहाः प्रोक्ताः ॥२५॥ दष्ट्रां श्रृंखल घणु शाखिल शशनाग और फीयाभंग उच्चलित यह छ; अपस्मार ग्रह या अदिव्य ग्रह कह जाते हैं। ध्वस्त पाद कर ग्रीव: फेनं मुंचति मुह्यति अपस्मारी पुनः स्वस्थ पतित्वोत्तिष्टति धुवं इति गृह लक्षणं ॥२६॥ ऐते ग्रहा अदिव्या मुंचंति न जीवितं बिना पुण्यात, साध्या स्तंत्रणेषां मंत्रं प्याने पुनर्नस्तः ॥२७॥ अपस्मार से पीडित अपने पैरों, हाथ और गर्दन को नचाता है और फेन डालता है, मूर्छित हो जाता है और फिर अच्छा होकर बार-बार गिरता है और उठता है । बहाल हैं; अविष्य ग्रह बिना विशेष पुण्य के जीता नहीं छोड़ते हैं, मंत्रशास्त्र से इसका निवारण सीखकर कष्ट दूर करना चाहिये। ॐनम श्चंडासि धाराटा चंड मंडले कुले भूतलेन से तिष्ठ तिष्ठ हुं फट ठाठः ॥ मंत्र स्टौ तस्य जपं कुर्वाणो मंत्र वित शिरिवना वंयं, कुादाविष्टस्य ग्रहः स तस्मिन स्थिरो भवति ॥२८॥ मंत्री इस मंत्र का जप करता हुआ ग्रह से पकडे हुए की चोटी बांध दे तो वह यह उस प्राणी में स्थिर हो जाता है । मलवयूकार चतुर्दश कलान्वितं कूट बीजमा लिखेत्, शिरिद वायुमंडल स्थं स नाम स्वर ताल पत्र गतां ॥२९॥ मातई स्नुहि दुग्ध त्रि कटुक हट गंध सर्षपैः मैः आलिख्य ललाटस्थं ग्रहिणां कुरुते ग्रहावेशं ॥३०॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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