SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 545
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ CSCISCISESSIRIDIOS वियानुशासन 250ISEASEDICISCES जुहुयाद् दधि भक्तन ज्वलेन च दशाहुतीः, पूर्वस्यां दिशि गेहस्य त्रिदिनं चौदो रवी जपेन्मंत्र मिमं मंत्री ग्राम मटो क्षिपेलिं, निंब सपंप निर्माल्य येणु रवंडेश्च चूणिते : धूपं वपुषि सर्वत्र निदध्यादर्भ कस्य तं, पंच पल्लव नीरेण नपर्न बहाणेचनं ॥८॥ अंबिकायाश्च पूजाऽपि विधेया पूर्व वस्तुभिः मंत्रिणं पूजयेत् पश्चात् वस्त्राधै भक्ति पूर्वक सौंदरी बलिदानेन तुष्टा बालं विमुचति ॐ नमो सौंदरी एहि-एहि बलिं गृह-गृह मुंच-मुंच बालकं स्वाहा ।। ॥९॥ चौदहवें वर्ष में सौंदरी नाम की देयी बालक को पकड़ती है। इसके पकड़ने से वह बालक पृथ्वी पर यकायक ही गिर जाता है। उसको रात दिन बुखार रहता है और नींद भी बहुत आती है। उस भारी विकार का प्रतिकार कहा जाता है- लाडू, खीर, यत, नमकीन पानी में भिगायी हुई तिलों की खल, पूर्व, उड़द की दाल, गन्ने के रस को पकाकर और पीसकर इन सब वस्तुओं को एक बड़े सांबे के बर्तन में रखे। इसके बाद शुद्ध की हुयी पृथ्वी पर दही, भोजन आदि से अग्नि में मंत्र पढ़ते हुए दस आहुतियाँ देये। फिर घर के पूर्व भाग की दिशा में सूर्योदय के समय तीन दिन तक मंत्री मंत्र को जपता हुआ गाँव के बीच में बलि को बालक पर उतारकर रखे। फिर नीम, सरसों, निर्माल्य और वेणु (बांस के टुकड़ों के चूर्ण से, अर्मक (पुत्र) के बालक के सारे शरीर में धूप देवे और पाँचों पत्तों के पकाये हुए जल से स्नान कराये, तथा ब्रह्मा और अंबिका देयी की भी पहले बतायी हुयी वस्तुओं से पूजा करे। चैत्यालय में पूजन करे फिर भक्ति पूर्वक मंत्री का भी वस्त्रालंकारों से पूजन करे तब सौंदरी देवी संतुष्ट होने पर बलि देने से यालक को छोड़ देती है। ॥ इति चर्तुदशो वत्सरः ॥ धनदेति निगन्हाति वर्ष पंचदशे अर्यकः, पीडितस्य तया देव्या वसित्यूदयमहिनिशं STERISTICISIOTECISTRISIOS५३९ 9350105015015015015
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy