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________________ OSRIDIOSDISTRIS05 विधानुशासन 505RISRASIRSION गाँव वालों की बोली में आक्षेप (झिड़का) करता है। उसकी यह दशा सदा बनी रहती है। इन विकारों का प्रतिकार औषधि और बलि आदि से करने का उपाय कहा जाता है-पूर्व, उड़द का चूर्ण, खीर तथा घृत, लोभिये, ब्रीहीधान, चावलों की खील को कांसी के बने हुये बर्तन में रखकर एक चार तोले सोने की बनवायी हुई प्रतिमा को दो लाल कपड़ों से ढंककर, बलि द्रव्यों पर रखकर, फिर सफेद और लाल कनेर के फूलों से तथा गंध धूप, फूलमाला और पान से पूजन करके और घृत और दूध की अग्नि में सोलह आहुतियाँ मंत्र पूर्वक देकर, घर के पूर्वभाग की दिशा में दाभ (दर्भ) बिछी हुई भूमि पर सूर्योदय के समय मंत्रपूर्वक बालक पर उतार काके, नील दिर तल उलि देवे। भेंडे के सींग, गुग्गल और पैर के नाखूनों को बराबर लेकर उसके चूर्ण की धूप बालक के शरीर में देवे । पाँचो पत्तों के पकाये हुए जल से बालक को स्नान करावे तथा चैत्यालय में पूर्ववत् ब्रह्मा और अंबिका देवी का पूजन करके आचार्य का भी वस्त्र अलंकार आदि से सत्कार करे । इस प्रकार बलि विधान करने पर देवदूती देवी उस बालक को छोड़ देती है। इस वास्ते मंत्री को आलस्य छोड़कर यही कार्य करना चाहिये। ॥ इति दशमो वत्सरः। एकादशे अब्दे गृहणाति मालिवी नामिका ग्रही, तस्य शिशो स्तस्य महत्कुक्षीय॑थाभवेत् ॥१॥ रूदन काक स्वरेणेष शुष्यदास्टा: कशत्कभाक, चल बुढ्या वदत्येवं प्रतिकारश्च कथ्यते ॥२॥ पाटासं सर्पिलसुन गुड लडुक शष्कुली कसरं, राज माषान्नं माषाण पिष्ट कानिच ॥३॥ समाषं पूप मेतानि कांस्य पात्रे विनिक्षिपेत्, प्रतिमां शात कुंभस्य पलेन परिमापितां ॥४॥ पीतांशुक युगां तत्र गंधारिऽचिंता न्यसेत्, तद्रव्येणैव जुहुयाऽजात वेदस्यष्टाहति: एकविंशति संख्यानं मंत्री को भटा वर्जितः, पूर्वस्यां दिशि गेहस्य मध्यान्हे वासरत्रयं CHERSIOTSIRIDIOTISTOR525५३४ PSIRIDIOISTRISODCHODI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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