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95IONSCISIOISION51015 विधानुशासन HSD15TOTHRISIOS015
उच्यतेऽस्या प्रतिकारो बलिना भेषजादिना, अपूर्प माष चूर्ण च पायसं सह सर्पिषा
राजमाषान् बीहि लाजान पात्रे कांस्य मरान्टासेतु, प्रतिमापि सौवर्ण पलेन परिमापितां
॥६॥
रक्त वस्त्र युग छन्नमादाय बलि मूर्धिनि, करवीरस्य कुसुमैः चैतैः रक्त सितेरपि
॥७॥
अचिंते गंध पुष्पायै स्तांबलेनान्विते, बलौ आज्येन पासा वन्ही जुहुयात्षोडशाहुती
॥८
॥
पूर्वस्यां दिशि गेहस्य दर्भान्वित मही तले, सूर्यस्योदय बेलायां त्रिदिनं प्रक्षिपेलिं
॥९॥
मेष कस्य विषाणं च गुग्गुलाऽधि नरवान समान, संचूण्यतेन धूपं च दधारालस्य वपुर्षाण
॥१०॥
पंच पल्लव नीरेण सापिते बालके ततः, पूज्यश्चैत्यालये ब्रह्मा यक्षिणी चापि पूर्ववत्
॥११॥
अचिंतेऽपि तथा चार्घ्य सा देवीं तं विमुंचति, तस्मात् तदेव कर्तव्यं निरालस्टोन मंत्रिणा
॥१२॥ ॐ नमो देवदूती एहि-एहि बलिं गह-गृह मुंच-मुंच बालकं स्वाहा ॥
॥ इति दशमो वत्सरः ।। दसवें वर्ष में देवदूती नाम की देवी बालक को पकड़ती है। उसे पकड़ा जाने पर बालक का शरीर टूटने लगता है। उसको पेशाब बार-बार आता है। दोनों आँखें नीली हो जाती हैं। बहुत अन्न खाकर, बहुत जल पीकर भी तृप्त नहीं होता है। बाजों को बजाता है।जमीन पर पड़ा-पड़ा भी गीत गाता है। फिर आदमी को आया हुआ देखकर उससे शिकायत की बात कहता है तथा वह बालक