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________________ PSP595952 विधानुशासन 959595959595 ब्रह्मणोत्यंऽबिकायाश्च पूजाकार्या यथा पुरा, आचार्यमपि वस्त्राद्यै ईक्षिणभिश्च पूजयेत् ॐ नमो नंदिनी एहि एहि बलिं गृह्ण गृह मुंच- मुंच बालकं स्वाहा ॥ ॥ इति पंचमो वत्सरः ॥ पाँचवे वर्ष में बालक को नंदिनी नाम की देवी पकड़ती है । वह रूठ जाता है तथा रूठ करके अपना अहित करता है तथा उसमें शक्ति जरा भी नहीं रहती है। उससमय बालक का शरीर दुर्बल हो जाता है, उसके शरीर से हर समय दुर्गंध आने लगती है, वह सूखने लगता है, वह बालक रात दिन रोता रहता है। प्रायः वह फिसलता हुआ हँसता है, बहुत पेशाब करता है, और श्वास के रुक जाने से बालक की कोख फूलने लगती है। इस विकार का प्रतीकार औषधि आदि से की जाती है-खीर, घृत, अन्न, दही, गन्ने का रस मिलाकर नमकीन पानी में भिगोई हुई तिलों की खल, भुने हुए तिलों की पिष्टों को एक बड़े भारी कांसी के बरतन में रखकर, चार तोले सोने की बनी हुयी प्रतिमा को दो वस्त्रों से ढंककर सबके ऊपर रखे। फिर उस बलि की धूप, फूल-माला आदि तथा पान से पूजा करने के पश्चात् मंत्रपूर्वक अनाज, घृत आदि मुख्य होम द्रव्यों से सोलह आहुतियाँ अग्नि में देवें। अग्नि में सात रात्रि तक बलि देवें। इसके पश्चात् पाँचो पत्तों से पकाये हुवे जल से बालक को स्नान करावे । प्याज, सर्प, कांचली, मोर के बाल और सरसों को बराबर लेकर चूर्ण से धूप देवें । इसप्रकार बलि विधान करने पर वह नंदिनी देवी बालक को छोड़ देती है। फिर पहले के समान ब्रह्मा और अंबिका देवी का चैत्यालय में पूजन करे तथा वस्त्र, दक्षिणा आदि देकर आचार्य का सत्कार करे। षष्टे अब्दे ग्रशते बालं कामिनी नाम देवता, ग्रस्तश्च स तथा बालः क्रंदनुच्चतरः स्वरः, द्रूत स्ततोऽपि पतति बहुबारं निशा सुच ज्वरेण महता तप्तः प्रेक्ष्यते गगनं स्थलं नाहार माददात्येष स विकारं श्वासित्यऽपि प्रतिक्रियाऽस्य महतो विकारस्य विधीयते ॥ ११ ॥ पायसेक्षु रस क्षीर माष पूपाज्य मोदनं, उदलावण पिण्याकं धान्याम्लं वा समऽन्वितां 95959595959595 पर६ PSPSP/ ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥ || 8 || 959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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