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________________ SSISTSDISTRI5T0585 विधानुशासन ISO150150150150155 पूर्वक बालक का उतारा करके बलि दें। इसके पश्चात बालक को पाँचों पत्तों के पकाये हुये जल से स्नान करायें तथा क्रम पूर्वक ब्रह्मा और अंबिका का चैत्यालय में पूजन करें अंत में वस्त्र आदि सब वस्तुओं से आचार्य का पूजन करें इसप्रकार बलि देने से संतुष्ट होकर चंचला ग्रही बालक को छोड़ देती है। इति द्वादश मासः आदिमं मासमा रभ्य मासानां द्वादशाऽवधि ग्रहोपशांति कथिता बालारोग्य विवर्द्धनी ॥१॥ प्रथम मास से बारहवें मास के अंत तक के ग्रहों की शांति का वर्णन किया गया है जो बालकों की निरोगता को बढ़ाने लगता है। आवं वत्सरमारभ्य शोडषाब्दाऽवधि कमात् ग्रहाणां विकृते वक्ष्ये शांति सिद्धैनिरूपितां ॥२॥ पहिले वर्ष से लगाकर सोलह वर्ष तक के ग्रहों के विकारों की शांति के सिद्धि का वर्णन किया जाता है। देवता नंदिनी नाम गन्हात्यादिम् वत्सरे पतत्याऽभिमुरची भूत्वा ग्रस्तः सोऽपि शिशुस्तथा ॥२॥ स्तब्ध नेत्र करोत्येष रोदनं च दिवा निशं वेल्लयित्वामऽमरिवलांगं ततश्च मूर्छितो भवेत् ॥३॥ आदत्ते चाऽपिनाहारं वैघृतेऽपिन किंचनं उच्यतेऽस्या प्रतिकारो विकृते भैषजादिभिः ॥४॥ अपूप मास पूपाज्य दधि क्षीरान्न मंडकान् राजमाषान्ब्रीहि लाजान पिष्टं भृष्ट तिलोद्भवं बहुन्येतानि विन्यस्यकांस्य पात्रेऽतिविस्तृते पलामानां कुर्वीत प्रतिमां प्रति वत्सरं S5IDSDTAARTSAPTSIDAS125/५१८ PISTRI5T0151050SIDISTRISH
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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