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________________ CASS5DISTRI5DIST05 विधानुशासन 505131581510SCISI ॐ नमो हय के शिनि एहि एहि बलिं गृह गृन्ह मुंच मुंच बालकं स्वाहा ।। इति बलि विसर्जनमंत्र: पंच पल्लव नीरेण पश्चात् स्नान विधि: शिशोः अनेन बलिना मुंचेत् बालकं हटके शिनि ॥१०॥ इति नवम दिवस: नवें दिन बालक को हय केशिनी नामकी देवी के पकड़ने पर बालक के शरीर में सुगंध आने लगती है वह ग्रही बहुत हानि पहुंचाती है | बालक जरा जरासी देर में फिसल पड़ता है उसके अधिक आँसू बहते हैं तथा शरीर और बायाँ हाय बारबार कांपता है । वह उठाने से रोता है बायें हाथ को मलता है इसका प्रतिकार औषधि आदि कही जाती है |वच और सर्फर सरसो और कूट को बराबर लेकर, पीसकर, जलके साथ सारे शरीर परलेप करे- अयवा बंदर के दाल भेड, के सींग, हाथी के बाल, मोर के पाव के नाखून बाल और बांस को समान भाग लेकर चूर्ण कर के बालक के शरीर पर लेप करे यह दूसरा लेप है । अन्न दही धृत को कांसी के बरतन में रखकर सोने की प्रतिमा यक्षिणी की बनवाकर, उसको दो सफेद कपड़ो से ढककर गंध आदि पान सहित मंत्र बोलते हुए उसको बलि पर रखकर बालक का तीन बार साक्षी फर ये साराशन विता के मात्र से दोपहर के समय तिराहे पर रखे । और पूर्वोक्त क्रम से ब्रह्मा और यक्षिणी का चैत्यालय में पूजन करे। तथा आचार्य को भी वस्त्र आदि अलंकार से सत्कार करे | इसके पश्चात बालक को पांचो पत्तो के पकाये हुये जलसे स्नान करावे इस प्रकार प्रयत्न करने से हेय केशिनी ग्रही बालक को छोड़ देती है । दशमे दिवसे बालं रोदिनी नाम देवताग्रस्ते विकृति स्तस्य गस्तस्रा बहुधा भवेत् ॥१॥ दिवां निशं दुनिना रोदनं कुरुते शिशुः स्वर्ण वर्ण भवेदंगं सुगंध्या स्यांचवक्र च ॥२॥ प्रतिकारो विकारस्य कथयेतस्यौषद्यादिभिः बचां सज रसं कुष्टं सर्षपात् सम भागतः गोमूत्रेण विनिष्पेष्टां कुर्याद् वपु विलेपनं निंब पत्राणि लाक्षा च सर्षपात् समभागतः ॥३॥ पिशवपुषि ले पोयं द्वितीयं कथितः शिशोः को द्रवाम्नं मुद्र पूपं सर्पिः कांस्यादि भाजनेः ಇಪಠಣಠಿಣioಟg yoಾ ಪರಿಣಣಚಣಪನ ॥४॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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