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________________ - ISIOSPISIONSISTSTO15 विधानुशासन SHOTSIDIS1050SOISS आदि पान से युक्त बलि को टूटे हुये बंधन याले बांस के वर्तन में (टोकरी) में इस बलि के बरतन को रखकर मंत्र पूर्वक तीन बार बालक का आरती करके, मंडप के पास सूर्योदय से पहिले घर के पूर्व दिशा के भाग में तीन बार, तीन दिन बलि रखे-पवित्र होकर ब्रह्मा और यक्षिणी की पूर्वोक्त विधि से पूजन करे और बलि कराने वाले आचार्यकी वस्त्र और दक्षिणा आदि से सत्कार करे । पांचो पत्तो के पकाये हुए जल से बालक को स्नान करावे इस प्रकार आराधना की हुई हासिनि देवी बालक को छोड़ देती है । नवमे दिवसे बालंगन्हाति हटा के शिनी सुगंध्यस्यात वपुहं ग्रही हतुंन ददाति च ॥१॥ क्षणे क्षणे स्ववलत्येष निश्वि सव्यधिका शिशः बेल्लितो विदद्यात्येष करा वामे मुहुर्मुहु ॥२॥ उद्भतो रोदति का वामं मष्टिं करोति च कथ्यतेस्य प्रतिकारो विकारा स्यौषधादिभिः ॥४॥ वचा सिद्धार्थ कुष्टामन पिष्टाभो भिः समाहातः तैरस्यै वपुषो लेपंकुयाद् गालस्य सर्वतः वानरांग रुहा मेष श्रंग:कर रूहानपिवहान्याद नरवान केशान वंशांच सम भागतः चूर्णी कृत्य वपुलेंपो द्वितीय परिकीर्तितः अन्जे दप्याज्य सहिते कांस्य पत्रांतर स्थिते ॥६॥ सौवर्णी प्रतिमां तत्र निधाय धवलांश्रुको गंद्यांसह तांब्ल समितं मंत्र मुळारन् ॥७॥ बलिमुत्य शिशवे कुर्वत् नीराजना त्रा श्मशान पूर्वदिग्मागे मध्यान्हे त्रिपथे क्षिपेत् ॥८॥ ब्रह्मणो प्यं विकायाश्च काया पूर्ववत्अर्चना मांत्रि कं पूजयेत् पश्चात् वस्त्रालं करणादि भिः ॥९॥ SSIO1510150150150151215| ५०२ P1510550505100505215
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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