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________________ 050/525252595_fazigeted Y59525252525 पूजा करे। पाँचों पत्तों के पकाये हुवे जल से बालक को स्नान करावें । तब कुमारी कारिणी उस पकड़े हुए बालक को छोड़ देती है। दिने चतुर्थे ग्रस्ते कुमारी कामरूपिणी आस्या लालाश्रवत्यश्रु मुहुरंगेषु बेल्लनं क्षणं विलव्यं निससोहिक्काऽपि च पदे पदे विकारस्याऽस्य महतः कथ्यते च प्रतिक्रियाः गजं दंताऽहि निम्मोंक सर्षपाः समभागातः गोमूत्रेण विनिपेष्टय कृत्वा वपुषि लेपनं सिद्धार्थे र्हरितालेन वानरांग रूहैरऽपि समाऽशेन कृतो धूपो निधातव्याः शिशोः पुरः भाषाणां स भृष्ट तिल पिष्टाज्य लड्डूकाणां पीतवस्त्र युग छनां खप्परे च प्रतिमां न्यसेत् धूपोऽक्षतादभि युक्तं तांबूलेनाऽन्वितं बलिं त्रिरात्रं मेक रात्रं च प्राग्भागे सयनः क्षिपेत् 118 11 ॥ २ ॥ ॥३॥ ॥ ४ ॥ ॥५॥ ॥ ६ ॥ पूज्यो पूर्व क्रमेणैव चैत्ये ब्रह्मा च यक्षिणी मांत्रिक पूजयेत्पश्चात् वस्त्रालं करणादिभिः 1119 11 ॐ नमः कामरूपिणी ऐहि ऐहि बलिं गृन्ह गृह मुंच मुंच बालकं स्वाहा पंचानां पल्लवानां च नीरेण स्नापितं ततः सद्य: सः त्यजितं बालं तं कुमारी कामरूपिणी इति चतुर्थ दिवस: चौथे दिन बालक को कामरूपिणी नाम की कुमारी के पकड़ने पर मुँह से लार बहती है बराबर आँसू बहते हैं । और शरीर कांपता है। बालक जरा सी देर देर बाद सांस लेता है पद पद पर हिचकी आती है अब इस बड़े भारी विकार का प्रतिकार कहा जाता है। हाथीदांत सर्प कांचली और सरसों समान भाग लेकर गोमूत्र के साथ पीसकर बालक के शरीर पर लेप करे । सफेद सरसों पडताल बंदर 96969595969595 ४९६ 112 11 1 1 j 1
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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