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________________ SAHIDI512551015015125 विधानुशासन 205051215105051015 देहस्तपित संकोचः करयोः पादयोऽपि स्तब्ध नेत्रः स्वसित्यूद्ध स्तन पानं न इच्छति ॥ २॥ ॥३॥ - प्रतिकारों विकारस्य कथ्यतेऽस्यौषधादिभिः गजदंतं सिरसिजान करपादनरवानऽपि सष्षपान् हरितालं च यवां च समभागतः अजामूत्रेण संपंष्य लिपेत्तन वपुःशिशो ॥४ ॥ - स पायस स गुडाम्नाऽज्य पंच स्वायैःच स्वप्परैः नील वस्त्र युग छन्नं सौवर्ण प्रतिमाऽन्वितं सुगंधि गंधैः कुसमैरऽक्षतै धूप दीपकै: तांबूले नाऽपि सहित प्रदोषे दिवसं त्रयं प्राच्यां दिशि निशाऽतेऽस्य निद्भद्यात मंत्र विद्वलिं चैत्ये ब्रह्मा च यक्षी च पूज्यौ पूर्वोदित् कमात: ॥७॥ ॐ नमः कुमारिकारिणी ऐहि ऐहि बलिं गन्ह गृह मुंच मुंच बालकं स्वाहा ।। ८॥ पंच पल्लव तोयेन स्नापयेद्वालकं तथा कुमारि कारिणी नाम ग्रस्तं मुंचतितं शिशु इति तृतीय दिवस: तीसरे दिन कुमारी कारिणी बालक को पीड़ा देती है। यह अंगों को ऊपर की तरफ फेंकता है और बालक के मुँह से राल बहती है। अंग का तपना अर्थात बुखार तेज होना, हाय पैरों को सिकोड़ना, आँखो ठहरी रह जाना, ऊँचा श्वास लेना और स्तन से दूध पीने की इच्छा नहीं रहना, इन विकारों का प्रतिकार औषध आदि से कहा जाता है। हाथी के दांत, सिर के बाल हाथ पांवो के नाखून, सरसों, हडताल और जो को समान भाग लेकर बकरी के मूत्र में पीसकर बालक के शरीर के लेप करें खीर गुड़ अन्न घृत और पाँचो प्रकार के भोजन को खप्पर में रखकर ऊपर दो नीले कपड़ों से ढकी हुई यक्षिणी की सोने की प्रतिमा रखे। फिर सुंगधित चंदन इन पुष्प माला अक्षत धूप दीपक और पान सहित प्रदोष (सूर्य निकलने से पहिले) काल में तीन दिन तक पूर्व दिशा में रात के खतम हो जाने पर मंत्र सहित बलि को रखे। पूर्वोक्त प्रकार से चैत्यालय में ब्रह्मा यक्षिणी की 150150151065TOISIOTSIDT5| ४९५ P15102510151055105051ST
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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