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________________ 95059595/5 विधानुशासन 55195 तेरहवें दिन की रक्षा त्रयोदशाह जातं तं ग्रही गृन्हाति साहिका चक्षु निर्मलनं क्षीरा भोजनं च तथा भवेत् कुलत्थ कुमाषानं शाकं माषं च यत्क्रिमं नारिकेर फलं न्यसे ज्जलने तीर्थ बलिं क्रमात् धूपैस्तु धूपयेत् मुंचेत ततो ग्रही ॥ ६३ ॥ वचोशीरामयैर्लेपः यक्ष एवं कृते प्रतिकारे बालं ॥ ६५ ॥ यदि तेरहवें दिन बालको को साहिका नाम की सही पकड़े तो बालक आंखे बंद करता है और दूध नहीं पीता है। उससमय कुलथी उड़द का अन्न शाक पके हुये उड़द और नारियल की बलि को क्रम से तीर्थ के जल में डाले। वच खस और अमय (कूठ) से लेप करे यक्ष धूप राल की धूप देने से सही बालक को को छोड़ देती है। ॐ नमो भगवति साहिके त्रिदंड़ाऽसि धारिणी रक्त केशि पिंगलानि ऐहि ऐहि आवेशय आवेशय ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं इमं बलिं गृन्ह गृह बालकं मुंच मुंच स्वाहा । चौदहवें दिन की रक्षा चतुर्दशाह जातां तां चामुंडा श्रयते ग्रही रोदनं चा सकृद्ज्ञाननं वमनं पयस स्तथा पंच वर्ण चरुं मार्त सराव स्थं समंत्रकं सायं काले श्मशाने च बलिन्य सेद्विचक्षणः ॥ ६४ ॥ ॥ ६६ ॥ ॥ ६७ ॥ ". गजदंताति विषाभ्यां लेपयेद्धूपनं भय त अहि त्यक निंब पत्राभ्यां ततो मुंचही प्रजा ॥ ६८ ॥ यदि चौदहवें दिन बालक को चामुंडा नाम की ग्रही पकड़े तो वह रोता है। उसको सुंगध करने का ज्ञान होता है और दूध की उल्टी करने लगता है। उसके लिये पांच रंग की नैवेद्य को मिट्टी के सकोरे 9595951 159505 ४५७ 9595959696951
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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