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________________ CAREERASICSITE विद्यानुशासन ISISTORICISCISIOES दसवें दिन की रक्षा दशाह जातं गन्हाति देवता सा दशानना तदा स्यात्नील देहत्त्वं रोदनं च दिवानिशं ॥५२॥ मदिरा गंधितास्थ स्यात् संकोश्च विशेषतः दाहिकं कोद्रवान्नं च संयुक्तं गोरसाटानं ॥५३॥ कृष्ण पुष्पादि धूपादि श्मशाने चापरान्हे के मंत्र जप्तं बलिं न्यस्य पत्रं भंगेन सिंचटोत् ॥५४॥ वनां सर्ज रसं कुष्टं सितसर्षप मेवच । शीत लोयेन संपेष्य तेन बालं प्रलेपर्यत् ॥५५॥ सर्षप लसुनं निबपत्रं सर्प त्वचा सहा धूपयेत् तैल संमिश्रं ततो मुंचे द्रही प्रजा ॥५६॥ बालक को दसवें दिन दशानना नाम की सही पकड़े तो यालक का शरीर नीला पड़ जाता है। बालक रात दिन रोता है। उसके मुँह से शराब की गंध आती है। और उसके शरीर में ज्यादातर खिंचाय या जलन होने लगती है। काले पुष्प और धूप आदि की बलि को दोपहर ढलने पर श्मशान में मंत्र जपता हुआ रखकर पत्र भंग जल से उसको सींचे (छीटें) दें मंत्री वचराल कूद सफेद सरसों को ठंडे जल से पीसकर ग्रहीत बालक के शरीर पर लेप करें। सरसों लहसून नीम पत्र सर्प कांचली में तेल मिलाकर धूप दें। तब वह ग्रही बालक को छोड़ देती है। ॐ नमो भगवती दशानने वज़ धारिणी वैतालक प्रिय ऐहि ऐहि ह्रीं ह्रीं क्रौं कौं आवेशय आवेशय इमं गन्ह गन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा ॥ ग्यारहवें दिन की रक्षा एकादशाह जातं तां प्रजां देवी महात्मिका ग्रहीन्ते यदि वैस्वर्य कासवास ज्वरस्तथा । ॥ ५७॥ C51815101510510505505 ४५५ PADDISTRISISSIODODRIST
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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