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________________ 95959595 विषानुशासन 95959595 द्विगुणी कृतेतु तस्मिन्मेधावी वाक्यटुश्चेव त्रिगुणी कृतेतु तस्मिन ग्रंथं सहस्रं पठत्यांशु मीठाकूट, असंगध, सैंधव, पिपली, काली मिरच दोनो जीरे, सूंठ, पाठालता अजमोद के साथ बराबर श्वेत वच का चूर्ण मिलाकर प्रातः काल मिश्री और घृत मिलाकर एक बहेड़े के फल के बराबर की मात्रा में मिलाकर चाटकर सात दिन तक पथ्य आहार का भोजन करने वाला किन्नर के समान मीठे स्वर वाला हो जाता है। उसी को चौदह दिन करने से महाबुद्धिमान बोलने में चतुर होता है। तथा इक्कीस दिन तक सेवन करने से एक हजार ग्रंथों को भी शीघ्र ही पढ़ लेता है। कष्ट देने वाली देवियों का वर्णन ॥ ४४ ॥ । आरभ्य जन्म दिवस द्दिन मासाब्दपूतनाः गृहंत्या द्वादशाब्दान्नारी राषोडशान्नरान् ॥ १ ॥ जन्म के दिन से लगाकर दिन महिने और वर्ष पर्यंत आरंभ करके पूतना स्त्री बालक को बारह वर्ष तक और पुरुष बालक को सोलह वर्ष तक कष्ट देती है। तासां नामं च कृत्यं च बलि मंत्र तथा परं मंत्र च विधिवत्प्रोक्तं मातशुनु तत पृथक ॥ २ ॥ उनके नाम क्रियायें और बलि मंत्र तथा दूसरे मंत्रों का अब विधिपूर्वक वर्णन किया जाता है । उनको पृथक पृथक सुनो। मंदना सा च भद्रा च घंटाली वाहिसी तथा शामी च ममंण चैव साहटा मधशासना शास्त्री दशानना चैव महात्म्या काक नासिका साहिकाऽप्यऽथ चामुंडा कुमारी च महेश्वरी ॥ ३ ॥ ॥ ४ ॥ वारुणी प्रथवी चैव वापणी व कपोतिनी डाकिनी च जटाधारी महानंदी तथांबिनी 95959525252525 *** P5252525252525 ॥५॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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