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________________ C510150150150505 विधानुशासन VSICTI5015555 | बाल ग्रह चिकित्सा | सातवां समुदेशः ।। श्री पार्श्वनाथाय नमः। अथातः सं प्रवक्ष्यामि सिद्ध बाल चिकित्सितं यात्राणो न विसामान न पायले ॥१॥ अब बाल ग्रह की सिद्ध चिकित्सा का वर्णन किया जाता है। जिससे रक्षा किये बिना बालकों की रक्षा नहीं हो सकती है। जातकर्म च रक्षा दंतोत्पत्ति फलानि च देव्याश्च दिन मासाब्द बलिं चाऽत्र क्रमानेयत् ॥२॥ इसमें जात कर्म (बालक पैदा होने के समय का कार्य) बालक की रक्षा दांत निकलने का फल तथा देवियों के दिन मास और बरसों की बलि का वर्णन क्रम से किया जावेगा। जाते के पुनमंत्री तैल मेकत्र भाजने जलं चान्यत्र निक्षिप्य सप्तादाय दस क्रमात् । ॥३॥ मंत्री बालक के पैदा होने पर एक बर्तन में तैल और दूसरे में जल को रख कर सात दिन तक निम्नलिखित क्रिया करे। ऐकैकं तेल निक्षिप्तां दापयित्या प्रदक्षिणां बालस्योपरि षटकत्वा दशामाययंतजले ॥४॥ एक कपड़े की यत्ती को जो पहले से ही तैल में रखी हुई हो प्रदक्षिणा देकर और उसको बालक के छह बार उतारा करके उस जल में घुमाकर क्षिपेत्सप्त दशा श्चैदस्ता प्रजायुष्मती भवेत् ततो ग्रहेभ्यो रक्षार्थ मंत्रज्ञः प्रयतेत्स च ॥५॥ दीपक की बत्ती के साथ साथ ही बाहर फेंक दे। इससे संतान अधिक आयुवाली होती है फिर मंत्री बालक को ग्रहों से रक्षा करने के लिये प्रयत्न करें। 851005015015251005105४३९ P15100510150150150151058
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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