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________________ CASIOISTOISIOSDIS05 विधानुशासन 9450150510151015015 क्षि पृथ्वी-पजल ई अग्नि-वायू हा आकाश -क्षिपउँ स्वाहा खगपति पंक्षाक्षर आं पाशं दिसा तक्ष शां होता है। खगपति गरूडस्य पंच अक्षरानि पाश बीजमामर्यादिकत्य आँ पंचतत्व दिशां च स्युक्षिपात वः ॥ ईकारः श्री श्च लक्ष्मी स्यात स्वीं मिंद क्वीं सुधाक्षर को मंकुशं क्लीं मनंग बीजं क्ष्म पीठमक्षरं ई श्री लक्ष्मी इवी इन्दु दयीं सुधाअक्षर -क्रों अंकुश क्लीं अनंग बीजक्ष्मं पीठ अदार होता है। स्वाहेति होम संज्ञं स्यात् इवीं मिंदु क्ष्वी सुधक्षरं वं सुधां संज्ञकं हंसः निर्विषीकरणं स्मृतं स्वाहा होम संज्ञक है। दलें क्लीं रल युग्मक, वं सुधा, हंसाः निर्विष बीज है। .. ॥६॥ रखः स्यादं चाक्षरं प्रोक्तं हतौ महाशक्ति बीजक हाः निरोधनं बीजं च ठः स्तंभाद्वय मक्षरं ॥७॥ खः खाद बीजः हसौं महाशक्ति बीज हा निरोधन बीज ठः ठः स्तंभन बीज दोनों अक्षर हैं। है जैनं सकलारव्यं च ब्लें विमल पिंडकं आकर्षणाक्षरं ज्ञेयं ग्लौं च स्तंभनं स्मृतं ॥८॥ ह जैन बीज सकलाख्य का बीज है ब्लें विमल पिंड है आकर्षण करने वाले बीज हैं। ग्लौं स्तंभन बीज है सृष्टि विसर्जनं जं अं विद्वेषं जूं च हूं मपि ब्लू द्रावण मिति प्रोक्तं चलनं य स्तथा चलः ॥९॥ जं अं सृष्टि विसर्जन बील-जूं हूं विद्वेष बीज-ब्लू दावण यः चलनं और अचल बीज भी हामादि पंचकं शून्यं लं इन्द्राक्षर संज्ञकं ये युगं वधबीजं स्यात् द्रां द्रीं च द्रावण व्यकं । ॥१०॥ हां ही हूं ह्रौ है: पंध शून्य बीज है। लं एन्द्र बीज है घे घे वध बीज है द्रा द्रीं द्रावण बीज है। हकारं शब्दकं शून्य नमः शोधनमर्चनं जपं च कुदिऽकलं परं सिद्ध समाव्हये ह शब्द शून्य नमः शोधन अर्चन अपर सिद्ध इनका जप करना चाहिए। ॥११॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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