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________________ SAKCIDIOISIONSCISCE विधानुशासन HEIODICTIONARISODS आठवें मास में विछिका नाम की देयी गर्भिणी के पास आती है। उसके लिये पके हुये उड़द गुड़ अन्न घृत सहित शुद्ध भोजन कुलथी केसर चन्दन और पुष्प आदि से सजी हुई बली को चांदी के बर्तन में रखकर, पूर्व की तरह दक्षिण पूर्व दिशा में अग्निकोण में सायंकाल के समय गर्भिणी पर मंत्र बोलते हुए तीन बार उतारा करके रख दें। विद्वान मंत्री शेष विधि को क्रम पूर्वक पूर्ण करें। ॐ नमो भगटाती तिलि विनि तिठिक्त महाजंभे गर्भ पाटिणी ह्रीं ह्रीं क्रौं क्रौं ऐहि ऐहि गर्भ रक्ष रक्ष इमं बलिं गन्ह गृह स्वाहा ॥ गर्भिणी नवमे मासि जंभा प्रविश्यति धुवं गुड क्षीर समायुक्तं पंच भदं पतान्वितं ॥३५॥ तिल माषस्य चूर्ण च धूप दीपादि संयुतं पात्रे तामे समादाय वलिमावर्त्य पूर्ववत् ॥३६॥ दिश्येवोचोत्तरे पूर्वस्यां क्षिपद वलि मनाकुलः ततः पूर्व कमेणैव च कुर्यादऽन्यशेषक ॥ ३७॥ नवमें मास में जंभा देवी गर्भिणी के पास आती है। उसके लिये गुड़, दूध, घी, सहित पाँचो प्रकार के भोजन, तिल, उड़द का चूर्ण, धूप और दीपक सहित यली को तांबे के बर्तन में रखकर पहिले के सामन गर्भिणी पर तीनबार मंत्र बोलते हुए उतारकर और निश्चित होकर उत्तर पूर्व के अर्थात ईशान कोण में बलि को रख दें। तथा शेष विधि को पूर्वोक्तं क्रम से पूर्ण करें। ॐ नमो भगवति जंभे मोहे महामोहे श्वेत माल्या भरणभूषिते ह्रीं ह्रीं कौं क्रौं ऐहि ऐहि इमं गर्म रक्ष रक्ष इटा बलि गह गड स्वाहा ।। गर्भिणी दशमे मासे गन्हीते जमिनी गही शाल्यन्नं च पयोमुगपक माज्यान्वितं तथा ॥३९॥ कदली पनसाभ्राणं फलै रिलं सशर्कर सुगंधदीप धूपादि मिश्रितं बलि मुंत्तम ॥४०॥ हेम पात्रे निधाटयेतं बलि मावा पूर्ववत् शांति मंत्र जपन् मंत्री पूर्वस्यां दिशि निक्षिपेत् 0505CSIRTSIDISCI525 ४२१ P1501501505DISTRI51015 ॥४१॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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