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________________ SSIODDISTOISO15005 विद्यामुशासन 95015015015015015 ॐ नमो भगवती दर धारिणी ही हींकों को एहि एहि वरदे इमं बलिंगन्ह गन्ह स्याहा ।। पूर्वोक्तेन क्रमेणैव कुर्यादऽन्यत् समंत्रक एवं सप्तदिनं कुन्मुिनीनपि च भोजयेत् ||२७॥ शेष विधि को पूर्वोक्त क्रम से ही मंत्र पूर्वक सात दिन तक करें और मुनियों को भोजन करायें। जंभिनी देवता याति सप्तमे मासिं गर्भणी ततस्तस्या विकारं च विदधाति न संशयः ॥२८॥ सातवें मास में गर्भिणी के पास जंभिनी नाम की देवी आती है और निसंदेह अधिक विकार पैदा करती है। ऊदनं दधिकं चैव शद्ध भएं पतान्वितं कुल्माष तिल चूर्ण च सु पक्काम्रफलान्वितं ||२९॥ गंध पुष्पादि धूपादा बलिं पात्रे निधायवै त्रिरावय जपेन्मंत्री आग्नेयं दिशि निक्षिपेत् ॥३०॥ भात, दही, घी, मिला हुआ शुद्ध भोजन, कुलथी तिलों का चूर्ण पके आम फल सहित गंध पुष्प आदि तथा धूप युक्तं बलि को एक बर्तन में रखकर गर्भिणी पर मंत्र बोलते हुये तीन बार उतार कर अग्निकोण दिशा में रख दें। ॐ नमो भगवतीजंभेनिके महामाये रणरण भणभण हीं हीं क्रौं क्रौं ऐहि ऐहि गर्भ रक्ष रक्ष इमं बलिं गृह गृह स्वाहा। पूर्वोक्तं क्रमतेः सूरिः पूजयेतां प्रजावती मुनिनपि यथा शक्ति भोजये दिन सप्तकं ॥३१॥ मंत्री पूर्वोक्तं क्रम से ही सात दिन तक गर्भिणी का पूजन करे और मुनियों को भी अपनी शक्ति अनुसार सात दिन तक भोजन करावें। गर्भिणीमष्टमे मासे वितिका याति देवता . पळ माष गुडान्नं च शुद्ध भक्तं वृतान्वित ॥३२॥ कुल्माष कसरं चाथ गंध पुष्पाद्यऽलंकृतं निधाय रजत पात्रे बलिमावा पूर्ववत् ॥३३॥ दिशि दक्षिण पूर्वस्यां सांयकालेऽथ निक्षिपेत् शेषमन्यत् क्रमेणैव कारटोत् सकलं गुरू ॥ ३४॥ CASIRIDICISCESSISTRISTOT5 ४२० PSIOTSIRIDIOSDISEDICTES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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