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________________ 9596959595151 विधानुशासन 2551 आम्रातक तरोर्मूलं पिष्टं शीतेन वारिणाः पीतं दिने दिने कुर्याद गर्भिन्यां गर्भ वर्द्धनं ॥ २ ॥ अंबाड़े की जड़ को शीतल जल से पीसकर प्रतिदिन पीने से गभिणी का गर्भ बढ़ता है। गिरिकण्र्याः शिफा श्वेत कुसुमायाः कटि तटः धार्यमाण स्त्रिधा गर्भ स्थापनाय भवेत्प्रभुः ॥ ३ ॥ नीली कोयल और श्वेत फूलों की जटा को कमर में बांधने से स्त्री के गर्भ की रक्षा होती है। ॐ अमृते अमृतोद्भव अमृतवर्षिणि अमृत रूपे इदमौषधमऽमृतं कुरू कुरू भगवति विधे स्वाहा । दद्यात् अमृत रूपिण्या विधया सर्वमौषधं अनया मंत्रितं मंत्री गर्भ शूल विनाशनं ॥ ४ ॥ गर्भ विनाशन अर्थात् गर्भपात निवारण के वास्ते निम्नलिखित सभी औषधियाँ अमृतरुपी विद्या मंत्र से अभिमंत्रित करके देवें। गर्भ शूल विनाशन अर्थात गर्भपात निवारण के वास्ते निम्नलिखित सभी औषधियां अमृतरूपी विद्या मंत्र से अभिमंत्रित करके देवें। I अश्व गंध्य शिफा क्वाथः कल्प संसाधितं पिबेत् हैांग यीनं बनिता गर्भस्य स्थापनं परं 11411 असगंध की जटा के क्वाथ को कल्प के द्वारा सिद्ध करके गर्भिनी को पिलावे अथवा ताजे गाय का मक्खन स्त्री को गर्भ की उत्तम रीति से स्थिर करता है गिरने से बचाता है। उदुंबर शिफा का निपीतं समशर्करं शालि पिष्टं भवेजं गर्भ विनिपात निवृतये ॥ ६ ॥ गूलर की डाढ़ी के क्वाथ में बराबर शक्कर और साठी धान की पिड्डी डालकर पिलाने से गिरता हुआ गर्भ रुक जाता है । क्षीरेण सघृतः पीतः कुलाल कर कर्द्दमः सहसा प्रति वनीयाद् गर्भ ध्वंसनं संशयः ॥७॥ कुम्हार के हाथ की कीचड़ को दूध और घी के साथ पीने से गिरता हुआ गर्भ तुरन्त ही रूक जाता है। 959695959 ४१२ 959595959
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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