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________________ S505121501501525 विधामुशासम PASSIRISTISEASESI सकल्याण घृत श्चाऽयमऽश्चिन्या परिकीर्तिता सेवनीयं सदास्त्रीभि रक्षणीयं प्रयत्नः ॥४८॥ मंजीठ, मधुक (महुवा) मीठा कूट त्रिफला, शक्कर, वच, अजमोद, दोनों हल्दी सिंही (छोटी पसर केटली) तिक्त करोहिणी (कटुकी) काकोली, क्षीर, काकोली असगंध की जड़ जीयक ऋषभक शंखपुष्पी संभालू के बीज दोनों कटेली नीलोफर चंदन मुनक्का पद्माख देवदारु इन सबको एक एक कर्ष प्रमाण लेकर चौवन कर्ष प्रमाण घी में पचावें। उस समय उसमें चार गुना दूध डालकर ठीक ठीक हलकी अग्नि दें पुरूष इस घी को पीकर स्त्रियों से सांड के समान आचरण करता है। ऐसा पुरूष पुत्रों को उत्पन्न करता है जो वीर विद्वान और सुंदर होते हैं। उसके संयोग से बंध्या और कन्या भी गर्भपाकर प्रसव करती है। जिसका गर्भ रुक गया हो अथवा जिनके बचे होकर मर जाते हैं वह सब इससे पुत्र प्राप्ति करती है इसी से बालकों के सब अंग ग्रह से छूट जाते हैं। यह धन यश आयु कांति लावण्य और पुष्टी देता है। जो भी कुछ गुण कहे जाते है (या कल्याण ने जो कहा है। वह सब इसके गुण हैं। इस कल्याण कारिधी को अभिनी कुमारों ने कहा है। इसको सदा सेवन करना चाहिये। और सियों की रक्षा करनी चाहिये। - - -- - - - --- - ----- - रक्षा मंत्रं वज़ स्फोटं किंरिवण्यां ख्यां विधाचापि संजपांत ज्या: कंठे वद्धं सूत्रं गर्भ रक्षेत् निमलिनत रक्षा मंत्र यज्ञ स्फोटमंत्र और किंखिनी विद्या नाम की मंत्रों को भी मौलिके डोरे पर जपकर गर्भणी के गले में बांधने से गर्भ की रक्षा होती है। ॐ रियलि रिवलि हुं फट ठः ठः रक्षा मंत्रः ॐ वज्र स्फोट ह्रीं स्वः फट स्वाहा वज्र स्फोटमंत्रः ॐ नमो किंरिवनी विद्ये असिता सिते उग्रचंडे महाचंडे भैरव रूपे ग्रहं बंधा बंधय कटिं बंधय बंधव हनु बंधा बंध्य आं नियोति शीयं किंरियनी स्याहा ॥ यह किंखिनी विद्या का मंत्र है। शुक्रेन्दु श्वी स्वरैनाभि क्रमाद्वेष्टयं बहिईले: हंसःपद समायस्तै रंभोजातस्य चाष्टभिः ॥ यंत्र मे तद्भुतं नार्या भूर्जादि लिरिवतं भवेत् गर्भ रक्षण कृत यद्वा कुड्यादि लिरिवताद्रिः ।। एक यंत्र में नाम को क्रम से शुक्र (व) इन्दु (इवीं) और १६ स्वरों से वेष्टित करके उसके बाहर चारों .तरफ आठ कमल पत्र बनाकर उसमें हंस पद लिखे । इस यंत्र को भोजपत्र पर लिखकर स्त्री के गले में अथवा हाथ में बांधने से गर्भ की रक्षा होती है। अथवा इस यंत्र को दीवार पर भी लिखने से रक्षा होती है। ಚಡಚಣೆಗಳಿ? YogGಣದಡದಡಬಡಿದ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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