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________________ 51015121510DOIDIO15 विद्यानुशासन PHOTOISI01513151015IOISS ॐ मल्टयूं लं जये विजये अपराजिते जुम्ल्यू जंभे भल्यू मोहय म्म्ल्यू स्तंभे झाल्ब्यू स्तमिनी (मम अमुकस्ट क्रोधादि स्तंभय स्तंभय आं ह्रीं क्रों लं म्यू ठ: ठः देवदत्तस्य क्रोध गति सैन्य जिव्हां स्तंभय स्तंभय ठः ठः॥ Patna स्तंचती स्वाहा अषिते Lauta Mean मोहे अभे विजमे स्थानेतुमैन श्री निज बीज में द्रं कुंकुमाघे लिरिवतं स भूज त्रिलोह वेष्टयं वियतं स्व बाहौ करोति रक्षा ग्रह मारिकाभ्टाः ।। उपरोक्त यंत्र में लं के स्थान पर ऐन्द्र बीज श्री को कुंकुमादि से भोजपत्र पर लिखकर त्रिलोह के जंतर में जडवाकर अपनी भुजा में पहिने तो यह यंत्र प्रहमारी और रोगों से रक्षा करता है। ॐ दम्ल्यूँ श्री जो विजये अजिते अपराजिते उम्ल्यूँ जंभे भल्व्यू मोहे म्म्ल्वयूँ स्तंभे हल्ल्यं स्तंभिनी श्रीं।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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