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________________ CISIO5CI501501505 विधानुशासन 05101510150150151065 हुं स्थाने मांत मालिव्य सरेफ नाम संयुतं विभति फलके यंत्रं द्वयोरपि च मत्ययोः । उपरोक्त यंत्र में ह के स्थान पर विद्वेष कराये जाने वाले दोनों व्यक्तियों के नाम सहित र्य बीज विभिन्न दो बेहड़ा के पत्तों पर लिखा जाना चाहिये। वाजि माहिष केशैश्च विपरित मुरव स्थयो आवेष्टय स्थापये झूमौ विद्वेष कुरुते तयो। फिर उन दोनों को घोड़े और भैस के बालों से लपेटकर स्मशान भूमि में परस्पर में पीठ से मिलाकर गाइने से दोनों व्यक्तियों में विद्वेष हो जाता है। ॐधल्यूँ जो विजये अजिते अपराजिते उम्ल्यूँजंभेम्म्ल्यूं मोहे हल्ल्यूँ स्तंभिनि देवदत्त यज्ञ दत्तयों विद्वेषं कुरू कुरू हूं ।। Regante. tha हम्म्य स्वाहा tane मत्स्च्छा माहे जमे स्वाहा विजमे स्वाहा % M ऐतयंत्रं बहेडा फलके विष गर्दभ रूधिरेण लिरिवत्या विपरीत मुखकर भेंस और घोड़े के बालों से लपेट स्मशान में गाड़े । विद्वेषं भवति (होता) है। STSDISTRI5DISTRISROSE ३८० PISTRI50151052150151005
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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