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________________ 959695955 विद्यानुशासन 5529505 राज्य से निकले हुए अपने राज्य को मंत्री वगैरह पद से रहित हुये अपने पद को, लक्ष्मी धन से रहित हुये अपने धन को पाते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं करना । भार्यार्थी लभते भार्या पुत्रार्थी लभते सुतं धनार्थी लभते वितं नरः स्मरण मात्रतः || 90 || स्त्री के वास्ते स्मरण करने से स्त्री, पुत्र के इच्छुक को पुत्र, धन की इच्छावाले मनुष्य प्राप्ति होती है। स्वर्ण रूप्येऽथवा कांस्ये लियित्वा यस्तु पूजयेत् तस्यै कुऽष्ट महासिद्धि गृहे वसति शाश्वतीं ॥ ७१ ॥ इस यंत्र को सोने चांदी व काँसे (अथवा तांबे) के ऊपर लिखकर पूजने से उसके घर में वांछित अर्थ की महासिद्धि रहती है। भूर्जपत्रे लिखित्वेदं गलके मूर्ध्नि वा भुजे धारितः सर्वदा दिव्यं सर्वभीति विनाशनं को धन की ।। ७२ ।। इस यंत्र को भोजपत्र पर लिखकर ताबीज में भरकर गले में या मस्तक में या भुजा में पहनने से हमेशा सर्व आरति चिंता भय से रहित हो जाता है। भूतैः प्रेतै ग्रह यक्षेः पिशाचै मुद्रालै स्तथा वातपित्त कफोद्रेकै मुच्यते नात्र संशयः ॥ ७३ ॥ भूतप्रेत नवग्रह यक्ष पिशाच मुद्राल दैत्य और वातपित्त कफ आदि रोगों के उपद्रव से निस्संदेह छूट जाता है। भुर्भुव: स्वस्त्री पीठ वर्तिनः शाश्वता जिना: तैः स्तुतै वंदितै द्दष्टैर्यत्फलं तत्फलं स्मृतम् || 98 || अघो लोक मध्य लोक स्वर्गलोक में जहां अकृत्रिम जिन चैत्यालय हैं जहां हमेशा जिनेन्द्र भगवान के बिम्ब विराजमान हैं। उनके स्तवन वंदना और दर्शन करने से जो फल मिलता है। उतना ही फल इस स्तोत्र वगैरह के स्मरण करने से प्राप्त होता है। एतद्रोप्यं महास्तोत्रं न देयं यस्य कस्यचित् मिध्यात्व वासिनो देयं बाल हत्या पदे पदे ॥ ७५ ॥ गुप्त यह महान स्तोत्र 'रखने योग्य है हर किसी को नहीं देना चाहिये। योग्य पात्र ही को बतलाना चाहिये | सम्यक्त रहित पुरुष को देने पर पद पद पर बाल हत्या के समान पाप का बंध होता है। 95252525252525 -4: MSPGESI Peses
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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