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________________ SSIOISSI5015255125 विधानुशासन 95105510TCTRICISTORY सर्वोषधि ऋद्धि ९ आमर्श ऋद्धि- खेलोषधि - जल्लोषधि - मल्लोषधि - विडोषधि ऋद्धि औषधि ऋद्धि- आसीविष ऋद्धि - दृष्टिविष ऋद्धि अनन्तबल ऋद्धि ३ मनबल - वचनबल - कायबल ऋद्धि तप्त ऋद्धि - ९ उग्रवाद्धि-दीप्त प्रद्धि - तप्त ऋद्धि महातप प्रद्धि- घोरतर ऋद्धि घोर पराक्रम ऋद्धि - घोर ब्रह्मचर्य तप ऋद्धि - अघोर ब्रह्मचर्यतप ऋद्धि रसऋद्धि ६ आशी विष ऋद्धि-दृष्टिविष ऋद्धि-क्षीर श्रायिणी ऋद्धि- मधुप्रायिणी - घृतप्राविणी-अमृतश्राविणी ऋद्धि-क्षीरश्राविणी वैक्रियक ऋद्धि ११ अणिमा - महिमा - लधिमा - गरिमा- प्राप्त- प्राकाम्य - ईशत्व वशित्वअमितबल अंतर्धान-कामरूपिणी क्षेत्र ऋद्धिअक्षीस -पोत मला मा चारण ऋद्धि८ पादानुसारिणी - जंघाचारिणी, तन्तु धारणी, फूलचारणी, पानयारणी, वीर्यचारणी,श्रेणी चारणी, अग्निचारणी, आकाश गामिनी, ॐ श्रीं ह्रीं श्च पति लक्ष्मी गौरी चंडी सरस्वती अयांअंबा विजया विलन्ना जिता नित्या मदद्रवा ॥६३॥ कामांगी काम याणा च सानन्दा नंदमालिनी माया मायाविनी द्रौद्री कला काली कलि प्रिया ॥६४॥ एताः सर्वा महादेव्या वर्तते या जगत त्रटो मासाः प्रयच्छंतु कांति लक्ष्मी पति मतिं ॥६५॥ हिमवत पर्वत पर पा द्रह १००० का योजन का है। उसमें १ योजन का कमल है। एक कोस की कर्णिका है। उस यज मयी कर्णिका में श्री देवी का मंदिर है। महा हिमवत् पर्वत पर महापद्मद्रह २०० योजन का है। र योजन का कमल है।दो कोस की कर्णिकी है। उसमें ही देवी का मंदिर है। निषध पर्वत पर ४००० योजन का तिगिच्छ का द्रह है। चार योजन का कमल है। चार कोस की CISIOISCISIOISSISTR5055 ३६७PXSTOTRICISCISIOTS05015
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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