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________________ SHOTSIRISTRI501505 विधानुशासन ASTRITICISORCISCESS येऽवधि लब्धर्यो ये तु परमावधि लब्धाः ते सर्वे मुनयो दिव्या मां संरक्षन्तु सर्वत: ॥६२॥ जितने मुनिराज अवधिज्ञान की लबिध्त सहित छटे गुणस्थान के धारी और परम अवधिज्ञान के धारण करने वाले बारहवें गुण स्थान वाले जिनको अन्तर मुहूर्त में केवल ज्ञान उत्पन्न होता है। सो सब मुनिराज छठे गुणस्थान से लेकर बारहवें गुणस्थान तक के मेरी रक्षा करे। भावनेन्द्र व्यंतरेन्द्र ज्योतिषकेन्द्र कल्पेन्द्रेभ्यो नमः श्रतावधि देशवधि परमावधि सर्वावधिबुद्धऋद्धि प्राप्तासर्वोषधिश्रद्धि प्राप्ता अनन्त बलऋद्धि प्राप्ततप्तऋद्धि प्राप्त रस ऋद्धि प्राप्त विक्रिया द्धि प्राप्त क्षेत्र शाद्धि प्राप्त अक्षीण महान स ऋद्धि प्राप्तेभ्योनमः। भवनवासियों के इन्द्र २०, व्यंतरोके इंद्र १६, ज्योतिषों के इन्द्र र, कल्पवासी १२,भवनवासी २०, चमरेन्द्र-वैरोचन-भूतानद-धरणानन्द-वेणु-बेणधारी-पूरण-अवशिष्ट-जलप्रभ-जलकीर्ति-हरिषेणहरिकांत-अग्नि शिखि- अग्निवाहन-अमितगति-अमितवाहन-घोष-महाघोष बेलांजन-प्रभंजन व्यंतरेन्द्र १६ किन्नर-किंपुरुष-सांतपुरुष-महापुरुष-अतिकाय महाकाय-गतिरति-मतिकीर्तिमानभद्र-पूर्णभद्र भीम-महाभीम-सरूप-प्रतिरूप-काल-महाकाल| ज्योतिषेष्केन्द्र सूर्य-चंद्रमा। कल्पवासी१२ सौधर्म-ईशान-सनतकुमार-आहेन्द्र-ग्रह्म-लांतव-शुक्र-सतार-श्रीमत-प्राणत-आरणअच्युत यह भेद देश अवधि के हैं। ६ अनुगामी-भवांतर तक जाय जैसे सूरज के साथ ज्योति जाय अनुनगामी साथ नहीं जाय वर्धमान- असंख्यात लोक बढ़े हीयमान घटता जाय अवस्थित घटे बढ़े नहीं अनवस्थित जितना बढ़े उतना घटे परमावधि-सर्यायधि विशिष्ट संयमधारी मुनिश्वर के होती है। १४ राजू उत्तंग ३४३ राजू धनमाकार में सूक्ष्म स्थूल-रुप अविभागी परमाणु पर्यंत जानते हैं। सर्वावधि ऋद्धिधारी तीनों लोक के पदार्थ जुदा जुदा जानता बुद्धि ऋद्धि - १९ केवल- अवधि मनपर्याय - बीजबुद्धि - कोष्टबुद्धि पादाणु सारिणी - संभिण श्रोत्र - दूरास्थादान -दूरस्पर्श दूरगंध-दूरदर्शन- दूरश्रवण - दशपूर्व - १४ पूर्व अष्टमहानिमित्त-प्रज्ञाश्रवण प्रत्येकबुद्धि - वादिकत्व ऋद्धि ಅಡಚಣಚಂಡ 34೯ Y5EMBಡ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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