SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ CSCISCIRCISCIEOS विद्यापुरशासन MACISCISCISCISCIEI देवदेवस्थ टाळ्यकं संस्य चकस्य या विभा दाया बादिल लजाग या मा हिंसतु गोहरा ॥२९॥ देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढ़के हुए मेरे शरीर के सब अंगों को गोहरा जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे | देवदेवस्य यच्चकं तस्य चक्रस्य या विभा तयाच्छादित सांगं मां मा हिंसतु वधिका ॥३०॥ देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को बिछू जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सताये । देवदेवस्य यच्चकं तस्य चक्रस्ट या विभा तयाच्छादित सर्वागं मां मा हिंसतु काकिनी ॥३१॥ देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढके हुए मेरे शरीर के संब अंगों को कांकमी जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे म सताये । देवदेवस्य यच्चकं तस्य चक्रम्य या विभा तयाच्छादित सांगं मां मा हिंसव डाकिनी देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को डाकिनी जाति के जीय पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे ।। देवदेवस्थ राख्यकं तस्य धक्रस्य या विभा तयाच्छादित सांग मां मा हिंसतु याकिनी देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी धन की प्रभा से ढके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को याकिनी जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे म सतावे । देवदेवस्य यच्चकं तस्य चक्रस्य या विभा तथाच्छादित सांगं मां मा हिंसतु राकिनी ॥३४॥ देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को राकिनी जाति के जीव पीड़ा नहीं हैं मुझे न सतावे | CIRCISIOCISIOTSICICIACI[ ३६० PISCESSIFICIASSISCISCESS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy