SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 365
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ CHRISTIATRICIDE विद्यानुशासन ISIOTSICASIOTSICISIPISE पद्मप्रभ वासु पूज्यो कला पन मधिश्रितो शिरः ईस्थिति संलीनौ सुपार्श्व पार्वजिनोत्तमौ शिरः इंस्थिति संलीनौ पार्श्व मल्लि जिनोत्तमौ ॥२४॥ पद्म प्रभ यासुपूज्य जी यह दोनों तीर्थंकर लाल वर्ण के हैं। हींकार की कला भी लाल वर्ण की हैं उसमें तिष्ठित है मस्तक में ईकार की मात्रा जिसका रंग नीला उसमें श्री पार्मनाथजी और मल्लिनाथजी जिनके शरीर की कांति भी नीले वर्ण की है। उसमें तिष्टित है। शेषा स्तीर्थकराः सर्वैरहः स्थाने नियोजिताः मायाबीजाक्षरं प्राप्ताश्चतुर्विशतिरह तां ॥ २५॥ बाकी शेष रहे सोलह तीर्थकर वह सब हकार और रकार में तिष्ठित है। इस हकार और रकार का रंग सुवर्णजैसा पीला है।इसप्रकार श्री भाषभनाथजी, अजितनाथजी,संभवनाथजी, अभिनंदनजी, सुमतिनाथजी, श्री सुपार्श्वनाथजी, शीतलनाथजी, श्रेयासनाथजी, विमलनाथजी, अनंतनाथजी, धर्मनाथजी, शांतिनाथजी, कुंथुनाथजी, अरनाथजी,नमिनाथजी, महावीर स्वामीजी,यह सोलह तीर्थकर माया बीज अक्षर ह्रींकार के हकार और रकार अक्षर में ही तिष्ठित है। इसप्रकार चौबीस तीर्थकर हीं बीजाक्षर में स्थित हैं। गतराग देष मोहाः सर्वपाप विवर्जिताः सर्वदा सर्वलोकेषु ते भवंतु जिनोत्तमाः ||२६॥ वह जिनेन्द्रदेव रागद्वेष मोह से रहित है।सब पाप कर्मो से रहित है।सर्वकाल विषय अतीत अनागत वर्तमान तथा सर्वलोक विषय पाताल पृथ्वी आकाश में अर्यात् तीनों काल व तीनों लोक में जिन भगवान उत्तम से उत्तम महाउत्तम है इनके बराबर और कोई नहीं है। देवदेवस्य यच्चकं तस्य चक्रस्ट या विभा तथाच्छादित सर्वांगं मां मा हिंसतु पन्नगाः । ॥ २७॥ देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रुपी चक्र की प्रभा से ढके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को सर्प जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे। देवदेवस्य यच्चकं तस्य चक्रस्य या विभा तटाच्छादित सर्वागं मां मा हिंसतु नागिनी ॥२८॥ देयों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रुपी चक्र की प्रभा से ढके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को सर्पनी जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे । CHOIDIOHRISTICISIOSITE ३५९ PISSISTRISIORSCISIOISTOISE
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy