SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ S5I0050SIONSIDASI015 विधानुशासन 150151055125TORISTOTRY ॐ हीं इवीं श्रीं अहं ॐ णमो अणंतोहि णमो जिणणं हां ही हूं ह्रौ हः अप्रति चक्रे फट विचक्राय असि आउसा झौं शौं स्वाहा ॥५॥ कर्ण रोग नाशयति यह मंत्र कान के रोगों को नष्ट करता है। ॐ हींगवीं श्रीं अहं ॐणमोकोहबुद्धिणं हां ह्रीं हूं हो हःअप्रति चके फट विचकाय असि आउसा स्वाहा ॥६॥ शूल गुल्मोदर रोगान्नाशयति यह मंत्र वायु गोल, पेट के रोगों को नष्ट करता है। महाश्वी श्री मणमांडीज बुझिणं हा ही हौं : अप्रति चके फट असि आउसा झौं झौं विचक्राय स्वाहा ॥७॥ श्यासं हिकादि नाशयति यह मंत्र श्वास और हिचकी आदि रोगों को नष्ट करता है। ॐ हीं इचीं श्रीं अह ॐ णमो पादाणु सारीणं हांहीं हो: अप्रति चके फट विचक्राय असि आउसा झौं झौ स्वाहा ॥ ८॥ परस्पर विरोधं नाशयति यह मंत्र आपस के बैर नष्ट करता है। ॐ हीं चीं श्रीं अहं ॐ णमो संभिण सोदराणं हां ही हूं ही हू: अप्रति चक्रे फट विचक्राय असि आउसा झौं झौ स्वाहा ॥ ९॥ श्यास नाशयति यह मंत्र श्वास के रोग को नष्ट करता है। ॐ ह्रीं श्वी श्री अह ॐणमोपत्ता बुद्धाणं हाहीं हूं ह्रौहःअप्रति चक्रे फट विचकाय असि आउसा झौं झौं स्वाहा ॥१०॥ प्रतिवादि विद्या छेदनं यह मंत्र प्रतिवादी की विद्या को नष्ट करता है। OTOSDISTRISTOT5R1505 ३२४ DISTRASIDASCISIOTSRIDESI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy