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________________ 9SP5959590 विधानुशासन अणं चं दिव्व थंमं सेनाथमं कुणेई सिग्येण कुटाणि रुद्धंणाम तरिय सरकी तरा सीलक व ॥ 959595955 सं वेद इचदंणय महिय पुरं मशमे लिकवं यंत मियं ममियं ममियं सिद्यवच्छे कम सुलिकव पूव्व कम्मे L उव रिक्वला रवि विज्जं सिय पसुणे पुज्जयंति फालेयंगे । भावई भाणु समाणु इच्छिय कम्मणि थेमेई ॥ ॐ ह्रीं ह्रीं हूं ह्रीं ह्रः श्रीं ह्रीं कलिकुंड दंड स्वामिन अमुकस्य क्रोध मुखाजिव्हा मति गति गर्भ दिव्या सेना स्तंभन कुरु कुरु क्षां क्षीं क्षं क्षौं क्षः ग्लौं ठःठः स्वाहा अर्थः- यह यंत्र अष्टदल संयुक्त लिख कर बाहर विधि युक्त तीह का नाम समेत जंगल जो यन को अंबुमार कहिये जो जडी तीह को रसिहं लिखे कुंट पंच कुण जो पंच पाखंडी को कमल पांच कुणा लिखे । और आठों दिशा उसके बाहर आठ कोण में अष्ठ पिंडाक्षर लिखे चंदन सेवा सुंगध द्रव्य से ५० अष्ट पिंड अक्षर त्यासू भित्र जो न्यारा सो वंदन कि इष्ट जो पण रसि जो पंदरह पिंडअक्षर सुरोध माही बैठे सिर भुजा हाथ आदि रात को हल्दी से लिख रखे । 1 फिर पूर्व दिशा मुखकर पूजे मस्तक भुजा चरण यह पंचाग नमस्कार शिल पर वा उर्द्ध ऊँचे स्थान पर बैठकर नमस्कार करे तो सर्व दिव्य थंमे तत्काल कलिकुंड मुनि को नमस्कार करने से कार्य सिद्ध होय । दिव्य सेना स्तंभन के लिए कुणा रो कणो सो अभिमंत्रित करि चंदन का लेप करना और पृथ्वी पर चौकोर माहियंत्र लिखे यह यंत्र अमृतमयी है। चांदी की कलम, डाम से लिखे ऊपर सूर्य बीजाक्षर लिखे सो सब प्रकार पूजनीक होय यह यंत्र सूर्य समान प्रताप बने हैं । मनोवांछित काम पूर्ण करे। ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः अणं मारण विद्या पर गये कुटिलाणि कोडि कम्भाणि मयण मयं पुरु सुखं इच्छिं वा सौकूव रुवाणि हेयसिया वश्य तमियं णाम रूद्ध रूपारं एवल माया जरसुस मंतं तरस बल ईछं । ॐ नमो भगवती पर विद्या छेदिनी ह्रां ह्रीं हूं ह्रीं ह्रः श्रीं ह्रीं कलिकुंड दंड स्वामिन् अमुकस्य झ झै छिंद छिंद भिंद भिंद तस्यां गाणि छेदा छेदय भेदय भेदय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः ग्रां हूं येये ॥ 9595959595 २९० PA19595195959
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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