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SASSISTOTSIRIDICIS05 विधानुशासन ASTRITICISDISCISCISI
देसस राज युद्धि पीडानर पहुईणि घोर उवसग्गां। णासह दसण मित्तं भूप पिसासई सव्वाणी ॥
पौष्टिक चक्र समाप्तः अर्थः- यह मंत्र एकांत में जपे तो जंतु और रिपु सर्व संतुष्ठ होते हैं। नियम कर पूजा करें तो हजारों जीय संतुष्ट होते हैं। पशु जीर्ण होय सोशुद्ध होय सर्वराज जंतु जीय तुष्टि पुष्टि सुख हो। नियमपूर्वकउस वक्त जब सिद्धों को भक्ति करे तो अग्नि जलदाह का नाश होया देश में राज में पुष्ट नरों में पीडा होय और नर पशु द्वारा घोर उपसर्ग नाश होय। राजा का तथा पिशाच के द्वारा सर्व उपसर्ग नाश होय।
अणंच लिवजंतं अट्ठदलं जतणेव विहितं । इमणम समेट जंगल अंबु पार सुद्धतस्स।
कुटं तरिटा गाणं माण समेगु सरोण वेब्जिं । लिकवईन रूठ दलाणं इंदु पुर संपुटे णियमां।
कुट पंच सुक्रोणे अह दिसं तस्स वहि रे कोणे। पिंडे सुज्अह लिवं चदं तयं तस्स परिपरियं
भिण वद्य सुइट्ट पण रसिरे पिंडं रूद्ध महिवे टुई। सिय पसूणकर दीणं अरिआण काले गयेणणि मिजुप्तं इदं दिसी पुणाई पुज्जई सिय पसुण भुविसुणिरिवच्च ॥
उव रिसि लारविइज्जा णिरोहणं दस च पण कोहं मुहं जीहमणं य चकूचं अणामा इदि व्वाणि यमई तकव मेतं कलिकुंड मुणि देत कज्ज।
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