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विद्यानुशासन 259595959526
सवेष्टया भीष्ट पुष्टयाह्य विकलि कलिकुंड समाहाने यह सेतुं भीमां स्त्रि माया परिवृत्तम कदौष्टय दुष्टोप सर्गान । ॐ ह्रीं श्री जैन बोज तदुपरि कलिकुंडेति दडांधिपाय स्फां स्फी स् स् स्फ्रौं स्फः इति चतुरस्त्र प्यात्म विद्यां च रक्ष रक्षेत्यं न्यस्य विद्या स्फुरण मनुपमं छिंद भिंद या हूं फट स्वाहेति मंत्र जयतु द्रद्रमना मना अन्य विद्या विनाशे ॥
अर्थ:- हुंकार ॐ रूद्ध १६ स्वरों से वेष्टित आगे ८ यज्ञ अक्षर स्फूर्जित देदीप्यमान हे पाश अंकुश सहित हमरझ स ख सहित हे वेष्टित हे मनोवांचित पुष्टि दायक हे मोहि कलि इति निश्चय करि कलिकुंड समान है माया करि ३ बार वेष्टित है दुष्ट का किया उपसर्ग दूर करता है।
मंत्रोद्धार
ॐ ह्रीं श्रीं अहं कलिकुंड दंड स्वामिन्नतुल बल वीर्य पराक्रम स्फां स्फी स्फू स्पौं, स् स्फः आत्मविद्यां रक्ष रक्ष पर विद्यां छिंद छिंद भिंद भिंद हुं फट् स्वाहा ।
सं साध्याखिल कल्याण मालो ट्रेलोदयः श्रिद्यम कलिकुंड मखण्डात्माभीष्ट मारोपयाम्यहं । इत्यादिनां अव्हानन स्थापन सन्निधि करणानि कुर्यात् ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं कलिकुंड दांड स्वामिन्नतुल बल वीर्य पराक्रमः अत्रावतरावतर अत्र तिष्ठति अत्र मम सन्निहितो भव भय संयोषद् हुं फट् स्वाहा ॥
पंचत् कांचन रत्न रश्मि रुचिर भृंगारनालोच्छल त्कपूरो । लवणगंध द्यावदलिभि: सतीर्थ वार्भिर्वरं
रमा हमादि भिरंधोरोप सर्गपहं चायेश्री पार्श्व मसमं यामिष्टं सं ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं कलिकुंड पार्श्व प्रभवेजलं निर्वपामीति स्वाहा ।
तेज स्तत्व कलिकुंड सिद्धये ॥
श्री खंड द्रव कुकुमामल मिलत्कर्पूर पूरादिभि सांधै मधु भृन्मुखोच्छ मधुरा रावैर्मनोहारिभिः तेजस्तत्व रामा है मादि मिरिहं घोरोपसर्गापहं ॥
चाये श्री कलिकुंड पार्श्व मसमं चामष्टि सं सिद्धये ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं कलि कुंड पार्श्व प्रभवे गंध निर्वपामिती स्वाहा !
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