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________________ 9SPSPSP PS विधानुशासन 959595959595 अर्थ:- इस यंत्र राज का मंत्र पूर्व के समान हो जानना चाहिये मंत्र वादी इसके जप को भी एकांत चित्त से पहले ही के समान करें। शाकिन्य पस्मारादि ग्रह पीडां विनाशयेत् । भगंदरादि रोगाश्च नाश्येन्नाशंशयः ॥ अर्थ:- यह यंत्र शाकिनी भी अपरमार और ग्रह पीड़ा आदि को और भंगदर आदि रोगों को निस्सन्देह नष्ट करता है। ॥ इति अनेक फल प्रद नव कलिकुंड यंत्रोद्धारः समाप्त : अथ तेषां यत्राणां फल व्यावर्णान्नमभिधीयते अर्थः- अब उन यंत्रो के फल आदि का वर्णन किया जाता है। क्ष, ह, भ, म, य, र, घ, झ, ख, ठ, व, बिन्दु उर्ध्व म ल व र रेफ सहित म्ल्वर्यू कार संयुक्त व, र, ल, क, स, ह, ज, म, से वेष्टित कर ब्रह्माणी आदि आठों से वेष्टित करें। प्रमित भुवानाधि को स्तुति करे अंत में होम, मंत्तर स्वाहा लिखे। और पूजन में भी स्वाहा शब्द से होम करें। अर्थ:- हुंकार ब्रह्म रूद्ध अर्थात् ॐ से वेष्टित बाहर स्वरों से वेष्टित और हकार के बाहर वज्र रेखा, आठ भिन्न-भिन्न अलग-अलग रेखा लिखे अंतराल में उकार, अनुपम, अनाहत लिखे और आठों दिशाओं में आठ पिंड़ाक्षर लिखे हम मरघसख लिखे एक पाखंडी में बीच में तो एक पिडांक्षर और दोनों तरफ अनाहत लिखो और कर्णिका माहिकलि कुंड मंत्र लिखो और आठदल कमल में आं वेष्टित करो। फिर माया हीं से तीनबार वेष्टित करो फिर चौकोर पृथ्वी वलय लिखे, दोनो बीज लिखो आठ दिशा में आठ बीज लिखे यं, र, ल, वं, शं, घं, सं, हं चारों कोण में चार क्षकार लिखें और चारों कोणों में ४ लंकार लिखो फिर मायबीज ह्रीं में वेष्टित करो क्रों से निरोध करो । उत्तराभिमुखो मंत्री निर्जने कांश्यभाजने मुष्टित्रय प्रमितया लेखिन्या दर्भ रुपया । अर्थ:- मंत्री एकांत स्थान में उत्तर को मुख करके कांसी के बर्तन में डाम की बनी हुई तीन मुली लम्बी कलम से इन यंत्रों को लिखे । श्री पार्श्वनाथ पुरुतः शुभ ध्यान परायणः सुगधैः कुसुमैः श्वेत शतमष्टोत्तर जयेत् 959595969599 २६९P/595959595955
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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