________________
CISIOSDISTRISTOTSITE विधानुशासन NSP595510351555105 अर्थः- उस पूर्वोक्त पर विद्या छेदन यंत्र को क्ष ह भ म य व र घ जांत (झ) कांत (ख) टांत (ट) और लांत (व) अक्षरों को मलबरम (म्ल्व ) सहित पिंडो तथा व र ल क स ह ज और च बीजों से उनकी आदि में ॐ ह्रीं और मंत्र में होम (स्वाहा) सहित यंत्र येष्टित करें।
ॐ ह्रीं क्षल्वयूँ ह भ म य र यज्ञ व ठ व वरं लं कं सं हं जं मं स्वाहा ।। ॐ ह्रीं श्रीं पार्श्वनाथाय फणिपति मंतस्तद वधु टांत पिंपडं मां मी मूक्ष्मैं:क्ष्मः एतत क्ष्मौ इति च कलि कुंडेति दंडाधिपायां हुं फट् स्वाहात मंत्रो जनयति च भयं
शक्तिनीनां विद्यते भूर्या वध्वा च भव्यो जयतु दृढ़मना सर्व कर्म प्रसिद्धटौ ।। अर्थः- ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथाय के पश्चात फणिपति (धरणेन्द्र) और उसकी स्त्री (पद्मावति) का नाम लगाकर टांत पिंड (ठम्ल्यू) क्षमा क्ष्मी दमूं दमौ दम दमः के पश्चात कलिकुंड दंड आदि लगाकर अन्त में हुं फट स्वाहा लगावे इस यंत्र सहित भोजपत्र पर लिखकर बाँधने और इसमंत्र को दृढ़ चित्त से जपने से सब कार्य सिद्ध होते हैं।
ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथाय धरणेद्र पावति सहिताय ठम्ल्बर्दू मां क्ष्मी क्ष्मू क्ष्मौं दमैं क्षमः • कलिकुंड दंड स्वामिन् अतुल बल वीर्य पराक्रम देवदत्तस्य शाकिन्यादि भयो मनं
कुरू कुरू आत्मविद्यां रक्ष-रक्ष परविद्यां छिंद छिंद भिंद भिंद हुं फट् स्वाहा॥
इति शाकिन्यादि भयोपशांति कत यंत्रोद्धारः यंत्र त्रस्य वजाग्रे विलिरवेत् पूर्ववत् कमात्
ह्रीं कारं शिरसा वेष्टयं को कारण निरोधयेत् ॥ अर्थः- उस पर विद्या छेदन यंत्र के वजों के आगे क्रम से ह्रीं कार से तीन बार वेष्टित करके क्रों से निरोध करें।
पृथ्वी मंडल मध्यस्यं कुर्याद् यंत्रेशमुत्तमं
घकलिकुंड समारख्यातं रंध्र संस्ट.या समन्नुतं ।। अर्थः- फिर इस रंध्र (आठ) संख्या युक्त कलिकुंड नाम के मंत्र को उत्तम यंत्र राज को पृथ्वीमंडल के बीच में करे अर्थात् इसके चारों तरफ पृथ्वी मंडल बनावे।
मंत्रोपि पूर्ववत् ज्ञेयो यंत्र राजस्य तत्क्रमः जयं च पूर्ववत् कुर्यात् मंत्रवादी समाहितः ॥
FORSERISTICISIOISTRISSISRTE २६८21525RISTORICISTRISTRIER