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________________ S ODESCIETRIOTEE विधानुशासन PASTOISTORIEISEASCIET सांतं बिंदुर्च रेफ वहिरऽपि विलिखेदायताटाब्जपत्रं दिस्चै श्रीं ह्रीं स्मरोन्यास्त्रिभ वशकरणं शो गज वशकरणं झौं ब्लें पुनर्मू वाह्ये ह्रीं ॐ नमो है दिशि लिरिवत चतुबीजकं होमयुक्तं मुक्ति श्री वल्लभो सौ भुतन मपि वशं जायते पूजयद्यः सांत (ह) के ऊपर बिंदु और रेफ लगाकर उसके बाहर अष्टदल कमल बनावे उसकी दिशाओं में ऐं श्रीं ह्रीं और स्मर बीज (क्ली) को लिखें शेष विदिशाओं में भ इ वशकरण क्रों झौं ब्लें और म्यूँ को लिखें, बाहर दिशाओं में ॐ नमो बीज है बीज को क्रों हीं और सहित लिखे-जो पुरुष इस यंत्र का पूजन करता है वह मुक्ति रूपी स्त्री का पति होता है, और तीनों लोक उसके वश में होताहै। ॐ नमो है ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं स्वाहा ॥ पूजा मंत्र।। चिंतामण्याद्वये चक्रे ते इमे संप्रकीर्तिते यह दोनों चिंतामणी यंत्रो का वर्णन किया गया। नमो भई नमो मई Peake झौं कार सर्व कर्भ निरोध रोकने का बीज है और आं अंकुश बीज अंकुश हाथी कोरो के श्री जो लक्ष्मी श्री करीजो शोभायमान करने वाली है। श्रुतकारी सर्वशास्त्र का ज्ञान देनेवाली है। और ऐं वशीकरण कर्ता हे क्ली आकर्षण करता है। इससे उत्तम दूसरा वशीकरण नहीं है। पिंड रूप जंत्र CTSIDDRISTOTRICTSIDE २४१BIPISISTRISTRICISTRISODE
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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