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________________ CASIRIDIOISTRI5T215105 विधानुशासन ADDITORSE5CISCIEN स्थाष्णे वारि पुरणौ रौं यक्तःपिंडः प्रकल्पितः सांगो लक्षं जपात्सिद्ध सर्वाभिमत सिद्धिदः मंत्रोद्धारः झांझी झू झें मैं झौं झः अस्त्राय फट् । चंद्रन्द्राग्नि गृहस्थोयं कुलि शाकार मुज्वलत्पीतः रिपूसेना तुरंगादौ प्यातस्तं स्थंभनं कुरुते ॥४॥ चन्द्रदाग्नि गहस्थां स तथा विध एव मूििन प्यातः रिपूं सर्व गंध वारणामभिलाषा दीनां निषेधाय ॥५॥ स्थाष्णु (ख) अव (ग) अरि (घ) पुराण (फ) के साथ रौं मिलाकर बना हुआ बीज अंग सहित एक लाख जपने से सिद्ध होता है । यह सब इच्छाओं की सिद्धि देता है। इस मंत्र को चन्द्रमा इंद्र और अग्नि अर्थात् चंद्र सूर्य और अग्नि के घरों में रहने वाला बजाकार उज्वल और पीला ध्यान करने से शत्रुओं के सम्पूर्ण घोड़े आदि सेना का स्थंभन करता है। यह मंत्र फिर उसीप्रकार से चंद्रमा इन्द्र और अग्नि के घरों में ठहरा हुआ मस्तक में ध्यान किया जाये तो सब शत्रुओं को उनका गंध और उनके हाथियों और इच्छाओं तक को रोकता है। सोग्न्याभो रिपु सेन्यैध्यतिः सन स्तत्परान्मुरवी कुरुते सतथा भूतो प्यातो भेदयति परैः कृतं स्तंभं ॥६॥ उसी का अग्नि के समान शत्रु की सेनाओं में ध्यान किया जाने पर उनको भगा देता है। अनिलाऽनल पुर युक्तःसाध्यं तत स्तोभयेत गृहादीनां अपयांति तथा विद्यतय्यानानादात नाद्यास्ते धरोचनया ॥७॥ अयं भूर्यादिषु लिरिवतः पूज्येत गहे यत्र विष तस्करभूत ग्रह कृत्यायः परिहरं तेतत् पिंडात्मकं समंनो मध्ये भूमंडलन द्यः स्याते: स शस्त्रं समुधतं सः स्तं भयति तथा भुजंगाश्च ||८॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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