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________________ 252525 विधानुशासम 95959595 ॥ गौरी विधानं ॥ अनल स्त्रि व पुज्वालाप्त सेना साधितः पुरः साक्षी च भवेद्देवी मंत्रस्या स्याधि देवता ॥ १ ॥ ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः अस्त्राय नमः अग्नि के समान स्त्री शरीर की धारक तथा सब और अग्नि का प्रयक्षी देवी इस मंत्र की अधि देवता होती है पहले अंग न्यास पूर्वोक्त क्रम से करे उनमें से अस्त्र का चिन्ह बनाने का यह उपरोक्त मंत्र हैं। अभ्यक्ताऽह्निपतैलेन मंत्र लक्षं यक्ष्याः संजपेत्सन्निधाने रात्री स्ति स्त्री विशांतिश्च प्रसिद्ध नित्यं षट्कं सा प्रयच्छेन्मणिनां ॥ २ ॥ एष मंत्रोयं गौरयाः ॐ प्रांजलि अजिते महाऽदिते स्वाहेति पंच शत संयुक्ताऽयुत द्वय जपात्सिद्धयेत् ॥ १॥ अपने पैरों को दीपक के तेल से पोतकर आधी रात्रि के बाद तेईस रात्रि तक यक्षिणी के मंत्र का एक लाख जपे क्षेत्रपाल की मूर्ति के सामने यह यक्षिणी सिद्ध होने पर प्रसत्र होकर प्रतिदिन छह मणियाँ देती है गौरी देवी का मंत्र है 1 ॐ प्रांजिलि अजिते महाजिते स्वाहा । यह मंत्र बीज हजार पांच सौ जपने से सिद्ध होता है। अमुना त्र्यधिक त्रिंशत संजप्ता रक्त सूत्र कृत रज्जुः वद्धा ज्वरं निहन्यात्सर्वा अपापदः शमयेत् ॥२॥ इस मंत्र को लाल धागे की बनी हुई रस्सी पर जपे तीन सौ तीन बार फिर बांधने से ज्वर नष्ट हो जाता है और सभी आपदायें शांत हो जाती है। अभ्यर्चितो धृतोर्वाभूर्जे गोरोचना समालिखितः स्मर च्च व्यवहारादिष्येष विद्यते परं विजयं ॥३॥ इस मंत्र को गोरोचन से भोजपत्र लिखकर पूजन करके दोनों भुजा में धारण करने से युद्ध और व्यवहार आदि में अत्यंत विजय करता है और वायु का असर नहीं होता है। वायू का असर नही है । सेनः द्विकरजित युक्तौ प्रभं जनि सुकेशिनि ठः ठेत्य ष मंत्रोयक्ष्यध्विदेवतः लक्ष जावे त्सिद्धं साध्यः स प्रेक्षीज्जपेदमुं मंत्रं संस्पृश्य 95969596959599 २२८/95969695969
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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