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________________ SAEROSCADDISODO विधानुशासन 2057075100505RISTOIES मृतक या विधया अह्मणी के पैर के अलक्तक से उसके मुख के ढ़कने के वस्त्र पर बिना आभरण वाली विधवा का रूप बनायें। ॐ विच्चे मोहे स्वाहा ___ यत्साधका भिलषितं ततस्मै वस्तु सा ददात्येव क्षोभं पयांति रंहाः सर्वा अपि भुवन वतिन्य : इस मंत्र को रात्रि में अकेले सात लाख जप करने से यह रंडा यक्षिणी सिद्ध होती है यह साधक की इच्छा की हुई सभी यस्तु देती है और उससे लोक में रहने वाली सभी विधावा क्षोभ को प्राप्त होती है। दर्पण निमित्त की विधि सिद्धयति सहस्र जाप्टौ ईश गुणितैः प्रणव पूर्व होमांतैः दर्पण निमित मंत्र श्चले तुले प्रभृतिनो धार्ग: मंत्रोद्धारः ॐघले घुलेचंडे कुमारिकयोरगं प्रविश्य यथा भूतं टाथा भव्यं यथा भवति सत्यं दर्शय दर्शय भगवति मा विलंबरा विलंबय ममाशां पूरय पूरठ स्याहा यह मंत्र दस हजार जाप से सिद्ध होता है। यत्सप्त बार मंत्रितः दुग्धं तत्पाययेत् कुमारिकयो: ब्राह्मण कुल प्रसूत्यो स्तयोटो स्सप्रवत्सरयो इस मंत्र से गो दुग्ध को सात बार अभिमंत्रित करके उस ब्राह्मण कुलोत्पन्न सात सात वर्ष से चौदह वर्ष की दो कन्याओं को पिलाएँ। संस्नाप्य ततः प्रातर्दत्वा ताभ्यामथ प्रसूनादीन भूम्यामऽपतित गौमटा सन्मार्जित भूतलो स्थित्या तब प्रातःकाल स्नान कराके पृथ्वी पर न गिरे हुवे गोबर से पुते हुये स्थान में खड़ा होकर उन दोनों कुमारियों को पुष्प आदि देकर.पुष्पादि से शुद्ध की हुयी पृथ्वी पर बैठे। चतुरस्त्र मंडल स्थं कलशं गंधोदकेन परिपूर्ण तस्योपरि आदर्श निवेश्येत पश्चिमाऽभि मुरवं CLICATICISCISIONSIDE २२२२505CISIONSIDESISAAICTET
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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