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15 विधानुशासन 95959SP/595
दूसरी विधि
सोने के सिंहासन पर विराजमान सुवर्ण चरणवेदी हरितमणी श्याम देहि की कांति हे हेम सिंहासन पर बैठी हुयी ध्यान करें ।
अन्य प्रकारेणाप्यबिंकाराधन क्रम
अष्ट महाप्रातिहार्य समन्वितां द्वादशा गण परिवृतां अरिष्टनेभि भट्टारकस्य प्रतिमा मालिख्य तस्य पादमूले आम कुष्मांडी अष्टभुजां शंख चक्र धनुः परशु तोमर यह पाएको एकै देन चतुभजां शंख चक्र वरद पाशन्या स्वरूपेण सिंहासन स्थिता शांति द्विभुजा स्थिता पार्श्वदेव कन्या वाम हस्त स्थित विमुकादिश्रमतां
अष्ट महाप्रातिहार्यो से युक्त बारह गणों से घिरी हुई श्री अरिष्टनेमि भट्टारक की प्रतिमा को लिखकर उसके चरणों के मूल में आम्र कुष्मांडी देवी को शंख धनुषवाण परशुतोमर खडं नाग पाश वरद सहित चार भुजाओं वाली तथा शंख चक्र वरद और पाश सहित चार भुजाओं वाली लिखे वह दूसरे स्वरूप से सिंहासन पर बैठी हुई है। उसके पास दो भुजाओं वाली देवकन्या खड़ी हुई दो जिसके बायें हाथ के ऊपर विमुपकादि श्रमतां ?
एवं क्रमेण देवीं पटे लिखित्वा श्यामरूपेन अतः पर प्रवक्ष्यामि अर्हद रिष्ट नेमि भट्टारकस्यार्चनं क्रियते पश्चाद आम्रकुष्मांडया देव्या अर्चना विधिं प्रवक्ष्यामि
इसप्रकार क्रम से वस्त्र के ऊपर श्याम रूप देवी को लिखकर इसके पश्चात पहिले अर्हत देवी श्री अरिष्टनेमि भट्टारक का पूजन किया जाता है। उसके पश्चात आम्र कुष्मांडी देवी की पूजन विधि कही जाती है। पूर्वोक्त मंत्रों से भगवीत आम्र कुष्मांजी का आव्हानन स्थापन तथा सत्रिधिकरण करके नीचे नीले मंत्रों से द्रव्यों को चढ़ावे ।
ॐ नमो आम्र कुष्मांडी सर्व्वपाप नाशके स्वाहा स्नानं ॐ नमो भगवती आम्र कुष्मांडी सुगंध महाभगवती महासुगधिनी स्वाहा गंध ॐ नमो भगवति आम्र कुष्मांडी कुसुमें भगवती महाकुसुम स्वाहा पुष्पं ॐ नमो भगवती आम कुष्मांडी सुगंध वर सुंगधिनी स्वाहा चरुं ॐ नमो भगवति आम्र कुष्मांडी महाज्वल महादीप्ते प्रयच्छकतुनः स्वाहा दीपं ॐ नमो भगवती आम्र कुष्मांडी महादेवी सर्व्वभूत वशंकर महादेवी सर्वभूतानां वलिं प्रयच्छतु स्वाहा ॥ बलिः काची तयारी ॥ 9595PSPSPSPPA १८८ PAP695959526