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________________ 1551 विधानुशासन 959595959595 ਧ झ ष छठ व चाष्टौ शेषान । ਹ T पृथक क्रमाद् विलिखेत् तथैव प्रणावाद्यान्नव तत्व नमतिमान्मंत्री ॥ १९ ॥ अर्थ :- इसके पश्चात दूसरे क्रम से य र घ झष छठ व पिंडों को आदि में हैं और अंत में नमः लगाकर लिखे। やらでらで क्रों सर्व दलाग्रेषु ह्रीं सर्व दलांतरेषु लिखेत । ॐ नय तत्वं ज्वालिनी नमः इत्यावेष्टयेत् ब्राह्ये || 20 || अर्थः- सर्व दलों के अग्रभाग में क्रों और बीच में ह्रीं लिखकर बाहर ॐ नव तत्व ज्वालिनी नमः मंत्र से वेष्टित करें 1 इत्थं कथितस्यास्य ज्वालिन्या परम मूल मंत्रस्टा मध्ये ध्यायेन् मातृ भिरष्टां भिः परिवृतां देवी ॥ २१ ॥ अर्थ : :- इस कहे हुवे ज्वालामालिनी के मूल मंत्र के बीचों में अष्ट मातृका देवियों से घिरी हुई ज्वाला मालिनी देवी का ध्यान करें । ज्वालामालिनी का ध्यान चन्द्रप्रभ जिननाथं चंद्रप्रभमिन्द्र णंदि महिमानं भवस्था किरीट मध्ये विभ्राणं स्वोत्त मांगेन ॥ २२ ॥ कुमुददल धवल गात्रां महिषा रूढां समुज्वलाभरणं, श्री ज्वालिनीं त्रिनेत्रां ज्वामाला करालागीं ॥ २३ ॥ अर्थ : :- अब ज्वालामालिनी देवी के स्वरूप का ध्यान के वास्ते वर्णन करते हैं। ज्वालामालिनी देवी इन्द्रों को प्रसन्न करने वाली, (इन्द्रनंदी आचार्य से वंदनीय) महिमा वाली चन्द्रमा के समान कांतिवाले भगवान चन्द्र प्रभु की मूर्ति को भक्ति से अपने सिर पर मुकुट के धारण करती है। वह देवी कुमुद के पुष्प के समान श्वेत शरीर वाली भैंसे वाहन वाली, उज्जवल आभूषणों वाली, तीन नेत्र वाली, और अग्नि की शिखा के समूह से भयंकर अंगवाली है। पाश त्रिशूल कार्मुक रोपण श ष चक्र फल वर प्रदानानि दधतीं स्व करेरष्टम यक्षेश्वरीं पुण्यां ॥ २४ ॥ नागपाश - त्रिशूल-धनुष-बाण- मछली चक्र फल और वरदान देने को अपने हाथों में धारण करने वाली पुण्य स्वरूप आठवीं यक्षेश्वरी है। 959595951955 PS959595905969 १६६Por
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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