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________________ PSPSPPSSP विधानुशासन 959595959595 118 11 चंच चंद्र रूचं कलापि गमनां यः पुंडरीकासनां सज्ञानाभय पुस्तकाक्ष वलय प्रावार राज्युज्जवलां त्वामध्येति सरस्वति त्रिनयनां ब्राह्मे मुहूर्ते मुद्रा व्याप्ताशाधर कीर्तिरस्तु महाविद्यः संवधः सतां जिसकी कांति प्रकाशमान चन्द्रमा के समान है, मयूर पर जिसकी सवारी है कमल जिसका आसन है, जिसके हाथ में ज्ञान मुद्रा है, एक हाथ में शास्त्र है, एक हाथ में अक्ष माला है, एक हाथ प्राणियों को अभयदान दे रहा है, जो उत्तरांग (दुपट्टा चादर) पहने हुए है। ऐसी सरस्वती का जो ध्यान स्मरण करता उसकी कीर्ति दशों दिशाओं में फैलती है। वह महान विद्वान हो जाता है सज्जन लोग उसका अभिनंदन करते हैं । 32 यमायै स्वाहा k B ॐ स्वाहा ॐ वरुणाय स्वाहा इस Int MPP ME O E ● भगवत्यै नमः शि THE Lat + ॐ सरस्वत्यै नमः वाग्वादिनी Lasi न झिं ॐ भद्रायै नमः 10 ॐ ART 9212 abs 2 मातरमे Patel . ॐ नंदायै नमः ॐ नमः 锹 नम. ॐ बाग्वादिन्यै नमः अनाव ॐ स्वाटर ॐ 959595t 2505014. P50505 वायवे स्वाद कराय 35 मयूरवाहिन्यै स्वाहा ॐ अधीनामच्य स्वाहा स्वा ॐ ईशानायै स्वाहा ३ कनक
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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