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ORSIRIDICISISISTRISITE विधानुशासन EASIDISISISTRISTORIES जो पुरुष चन्द्रमा के समान कांतिवाले पुष्पों से एकाक्षरी माया बीज ही का सात लाख जप करता है उसको सरस्वती सिद्ध हो जाती है।
पीतं स्तंभादि कार्यों सितमति सुभगे शांतिके वाग्विधाने आकृष्टो वश्य कामे जप कुसुम निभं जाति सिंदुर वर्ण, उच्चाटे धूम्र वर्णे स्फटिक मणि निभं रखेचरत्वं ददाति
व्योमामं मोक्ष हेतुः परम परमयं पातुनो जैनशक्ति ॥१९॥ पीला फूल स्तंभन आदि कार्यो में, अत्यंत श्वेत उत्तम कार्यों में, सरस्वती विधान में जाति (चमेली) से सिंदूर के समान वर्ण वाला पुष्प आकर्षण तथा वशी करण में , धूमवर्ण का पुष्प उद्याटन में प्रयोग किया जाता है स्फटिक मणि के समान वर्णवाली आकाशगमन की सिद्धि देता है और आकाश के समान वर्णवाला मोक्ष का कारण है। यह जिनेन्द्र भगवान की शक्ति जयवंत होवे।
| सरस्वती देवी का स्तोत्र |
बोधेन स्फुरताचिताप चलया सूक्ष्मा विकल्पात्मना पश्यंती श्रति गम्य तज्जवपषा या वैरवरी मध्टामा तां चित्रात्मा समस्त वस्तु विशदोन्मेषोन्मुख ज्योतिषे
शब्द ब्रह्म लसत्परापर कलां ब्राह्मी स्तुम स्ता वं जसा ॥१॥ सरस्वती का दूसरा नाम ज्ञान है ऐसा कोई जीव नहीं हो जो ज्ञान रहित हो। इसलिये सदा मोजूद रहकर प्रकाशित होने वाली चिररूप सरस्वती देवी तुम्हारा अति सूक्ष्म रूप हो जाता है लब्धि प्रयाप्तक निगोदिया जीव में तुम्हारा अति सूक्ष्म रूपहोजाता है और वह ज्ञानाबरणी कर्म से आवृत नहीं होता तुम जब कंठ, तालू, होंठ, मूर्घा आदि के द्वारा उत्पन्न होकर श्रोतेन्द्रिय द्वारा गम्य होती है। तब कानों से सुनाई पड़ने लगती है। तब तुम्हारा रूप मध्यम हो जाता है संसारी जीवों के ज्ञानावरणी कर्म के क्षयोपशम के अनुसार भिन्न भिन्न प्रकार का होने लगता है इसलिये हे श्रुतज्ञान रूपे नाहि तुम्हारी स्तुति हम विभिन्न प्रकार की समस्त वस्तुओं के स्वरूप को भली प्रकार जान कर शक्ति प्राप्त करने के लिए अर्थात सर्वज्ञ बनजाने के लिये करते हैं।
त्वं लब्ध्यक्षर बोधनेन भविनो नि त्युद्यताणी यशो स्तत चित्कलया परा स्त्रिभुवनानु ग्राहिगीः सर्गया चिच्छक त्यां रिवल वेदिनः परमया संजीवयस्या तया मुक्त्यानयुते ग्रहती भगवती ध्येयासि कस्य हेन || २ ||
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