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CTSIDESIRI5DISSIO5 विधानुशासन 05050505051215
विद्या मयेयं भवते प्रदद्यात त्वानदेयान्यद्दशेजनाय
तं श्रावटित्वा गुरू देवताना मग्रे सु विद्यां विधिना प्रदयात ॥१२॥ मैं तुमको यह विद्या दे रहा हूँ | तुम भी इसको मिय्यादृष्टि पुरुष को नहीं देना । गुरू देवताओं के सामने यह वचन सुनाकर विधिपूर्वक विद्या दें।
मंत्री सुर मंत्री समः स्या द्धया स्या च्चत्तस्य वैदग्ध्यं
कवितायां गमकत्वे वादित्वे वाग्मितायां च ॥१३॥ इस मंत्र की सिद्धि में मंत्री देवताओं के मंत्री वृहस्पति के समान बुद्धिमान, चतुर हो जाता है। व कविता बनाने में और व्याख्यान देने में और शास्त्रार्थ करने में अद्वितीय हो जाता है।
उष्मा मादिमं बीजं ब्रह्म बीज समन्वितं लांते रांतेन संयुक्तं माया वाग्भव संयुतं
॥१४॥ उष्मा के आदि बीज श ब्रह्म बीज ई लांत (व) रांत (ल) को माया ही और वाग्भव (ऐं) से युक्त करें।
शल्या ह्रीं एं मंत्रं जपति द्यो नित्यं जाति का कुसुमैवरैः
रवि संख्या सहस्वाणि स स्थावाचस्पते समः ॥१५॥ श्ल्यों हीं ऐं मंत्र का जो नित्य उत्तम चमेली के फूलों से आठ हजार जप करता है वह वृहस्पति के बराबर हो जाता है।
वाग्भवं काम राजं च सांत षांतेज संयुतं ॐकार संयुतो मंत्रः सःस्या स्लिपर संज्ञकं
॥१६॥ वाग्भथ () कामराज (क्ली) सांत (हकार) में मिला हुआषात (स) औरउँकार सहित मंत्र अर्थात् ऐ क्लीं ह्सौं त्रिपुर नाम वाला मंत्र कहलाता है।
श्वेतैः पुष्पैः भवेदाचा सोणितैर्वस्य मोहनं लक्ष्याजापेन सं सिद्धिं यांति मंत्रः सहोमतः
॥१७॥ सफेद फूलों से बाणी की सिद्धी और लाल फूलों से यश्य और मोहन होता है। यह मंत्र एक लाख जप और होम से सिद्ध होता है।
सप्त लक्षाणियोविद्यां मायामेकाक्षरी जपेत तस्य सिद्धयति वागीशा पुष्पैरिंदु समप्रभैः
॥१८॥ CSIRASTRITICISTOIDIODCA १४६ -5I0RRIERISTICISTRASOISI